एक क्रांतिकारी जिसने जालियांवाला बाग हत्याकांड का प्रतिशोध लिया था

क्रांतिकारी ऊधम सिंह की 125वीं जयंती

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ब्रह्मानंद ठाकुर
जी हां, आज मैं महान देशभक्त और क्रांतिकारी ऊधम सिंह की बात कर रहा हूँ। आज उनकी 125 वीं जयंती है। पंजाब के सुनाम में 26 दिसम्बर 1899 को उनका जन्म हुआ था। जन्म के ढाई साल बाद मां की मृत्यु हो गई। जब वे 8 साल के हुए तो सिर से पिता का साया उठ गया। इनका बचपन अमृतसर के एक अनाथालय में बीता। इस स्थिति में भी ऊधम सिंह ने इंटरमीडिएट तक की शिक्षा ग्रहण की। प्रथम विश्व युद्ध 1914-1919 के कारण देश में भयंकर भुखमरी के हालात पैदा हो गये थे। दूसरी ओर अंग्रेज शासक कर्ज में दबे किसानों पर निर्मम अत्याचार कर रहे थे। राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने एक काला कानून, रौलेट एक्ट लागू कर दिया था। इस कानून का देश भर में विरोध हो रहा था।
14 अप्रैल 1919 को इस कानून के विरोध में अमृतसर के जालियांवाला बाग में एक सभा हो रही थी। पूरा अमृतसर पहले ही फौज के हवाले किया जा चुका था। ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड ओ’ डायर के नेतृत्व में फौज ने जालियांवाला बाग को घेर कर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं। इस गोलीबारी में सैकड़ों की संख्या में लोग मारे गये थे। गोली चलाने का आदेश पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल फ्रांसिस ओ डायर ने दिया था। इस घटना से ऊधम सिंह का खून खौल उठा। उन्होंने जालियांवाला बाग की खून से सनी मिट्टी हाथ में लेकर इस नृशंस हत्याकांड का बदला लेने की प्रतिज्ञा कर ली। इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में उनको 21 साल लग गये। इस अवधि में उनके भीतर प्रतिशोध की ज्वाला धधकती रही। जिस ब्रिगेडियर रेजिनाल्ड ओ डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने जालियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया था, उसकी पहले ही मौत हो गई थी। बच गया था,गोली चलाने का आदेश देने वाला माइकल फ्रांसिस ओ’ डायर। इस नरसंहार का वही जिम्मेवार था। लिहाजा ऊधम सिंह के निशाने पर वही माइकल फ्रांसिस ओ डायर था। दो दशक से अधिक समय बीत चुका था। 13 मार्च 1940 को लंदन स्थित कैकस्टन हाल में एक सभा हो रही थी। ऊधम सिंह उस वक्त वहां मौजूद थे। सभा में माइकल ओ’ डायर ने ज्यों ही अपने भाषण के दौरान भारत में पुनः दमन की बात कही, ऊधम सिंह के पिस्तौल से गोली निकली। निशाना अचूक था। माइकल ओ’ डायर धराशाई हो गया। उसका काम तमाम हो चुका था। ऊधम सिंह चाहते तो वहां से भाग सकते थे। मगर नहीं, उन्हें भागना मंजूर नहीं था। उनको गिरफ्तार कर लिया गया। घटना के 4 माह 17 दिन बाद लंदन में इस महान देशभक्त को फांसी दे दी गई। फांसी का फंदा गले में डालते वक्त उन्होंने तीन बार कहा था — इन्कलाब! इन्कलाब! इन्कलाब! उनके इस प्रतिवाद की गूंज पूरी दुनिया को सुनाई दी थी।

 

125th birth anniversary of revolutionary Udham Singh
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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