भीष्म, दुर्योधन और द्रौपदी

द्रौपदी के व्यंग्य को दुर्योधन भूल नहीं पाया

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डॉ योगेन्द्र

पांडव जब बारह वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद हस्तिनापुर लौट रहे हैं तो दुर्योधन भीष्म के पास जाता है और उनसे पूछता है- हे पितामह! यह बताइए कि आज की तिथि में हस्तिनापुर का युवराज कौन है? भीष्म पितामह कहते हैं कि यही सोच कर तो मुझे रात में नींद नहीं आती? पर इतना जान लो कि हस्तिनापुर दोनों युवराजों से बड़ा है। भीष्म साफ़-साफ़ यह नहीं कहते कि युधिष्ठिर पहले युवराज थे और उन्हें युवराज पद से कभी हटाया नहीं गया, इसलिए जब वे वापस आ रहे हैं तो वही युवराज हैं। महाभारत का हर पात्र उलझा हुआ और विवश है। आज भी कमोबेश यही स्थिति है। भारत की गद्दी पर बैठा है। उन्हें उनके मंत्रिमंडल भी सच नहीं बताते। महाभारत में एकमात्र विदुर थे जिसमें सच कहने की हिम्मत थी। सच के लिए उन्हें सजा भी मिली। वे हस्तिनापुर से निकाले भी गए, फिर वापस भी बुलाये गये। सच का रास्ता कठिन रास्ता है। देश के नीतिज्ञ में नीति नजर नहीं आती। पढ़े लिखे लोग अपने-अपने दड़वों में फर्जी बहसों में उलझे हैं और फिर टुकड़खोर हो गये हैं।

द्रौपदी ने अपने जीवन में भयानक भूल की, जब उसने दुर्योधन को कहा कि अंधे का बेटा अंधा ही होता है। धृतराष्ट्र के अंधत्व के लिए उसकी मां दोषी थी, क्योंकि नियोग के समय उन्होंने आंखें बंद कर ली थी। दुर्योधन तो धृतराष्ट्र और गांधारी का बेटा था। धृतराष्ट्र कहीं से भी पिता के अंधेपन का कारण नहीं था। द्रौपदी ने अपने व्यंग्य बाण से दुर्योधन को प्रताड़ित किया। दुर्योधन इसे भूल नहीं पाया। अगर वह उदार और महान होता तो इसे भूल सकता था या फिर दूसरे तरीके से उत्तर दे सकता था। लेकिन वह राजा का पुत्र था। अहंकार उसके नस-नस में था। उसके अहंकार को द्रौपदी ने जो चोट पहुंचाई, तो इसकी वजह से वह तिलमिलाया और बदला लेने के लिए षड्यंत्र रचता रहा। आज भी माफ करने वाले बहुत कम लोग हैं। ज्यादातर बदला चुकता कर रहे हैं। भागलपुर में भयानक दंगा हुआ था। लोग बहुत चिंतित थे। जगह-जगह गोष्ठियां, विचार विमर्श और संवाद का दौर चल रहा था। जमुई खादी ग्राम में राममूर्ति जी ने एक बैठक बुलाई। आदरणीय कुलदीप नैयर वहां मौजूद थे।‌ राज्य और राज्य के बाहर के बहुत से साथी मौजूद थे।‌ राममूर्ति जी भाषण देने में दक्ष थे। अपनी बात बहुत बेहतर ढंग से संप्रेषित कर लेते थे। उन्होंने बहुत सी बातें कहीं। उनकी एक बात मुझे चुभ गई। उन्होंने कहा कि भारतीय मुसलमानों को अपने पूर्वजों की गलतियों के लिए माफी मांगनी चाहिए। इस बात पर मैं खड़ा हो गया और कहा कि इस हिसाब से तो सवर्णों को भी अपने पूर्वजों की गलतियों के लिए माफी मांगनी चाहिए। सभा खत्म होने के बाद कुलदीप नैयर मेरे पास आये। मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा कि तुमने बहुत अच्छा किया। उस वक्त मैंने बहुत प्याज खा रखी थी। मैंने कहा, लेकिन आपकी चुप्पी ठीक नहीं लगी। यह बात आपको कहना चाहिए था।

बात बहुत पुरानी हो गई है, लेकिन हम बाघ और बकरी की कहानी दुहरा रहे हैं। बाघ आज भी बकरी को कह रहा है कि तुम नहीं, तो तुम्हारे मां बाप दोषी थे। इसलिए मैं तो तुम्हें निगलूंगा।‌ हम सब इससे कब तक मुक्त होंगे? बदले का जीवन या बदले की राजनीति से बदलाव नहीं होता, विध्वंस होता है। विध्वंस का खेल बहुत हुआ, हम रचने का काम करें। हम सब में रचने का गुण है। अंगुली माल में भी संभावना तो होती ही है, वरना वह कैसे बदलता?

 

Bhishma-Duryodhana-Draupadi
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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