एमएसपी कथा : केकरा से करी अरजिया

किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान बेंचने का इंतजार

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ब्रह्मानंद ठाकुर
धान तैयार होकर खलिहान से घर आ गया है। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर धान बेंचने का इंतजार है। व्यापारी धान उत्पादक किसानों से 1800 से 1900 रुपये क्विंटल की दर से धान खरीद रहे हैं।

सरकार ने इसबार साधारण धान का 2300 रुपये और ए-ग्रेड धान का 2320 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पैक्स और व्यापार मंडल को धान क्रय का दायित्व है। अखबारों में प्रथम पेज पर धान क्रय से सम्बंधित फुल पेज का विज्ञापन छपा है। तिरहुत प्रमंडल समेत राज्य के 5 प्रमंडलों में 1 नवम्बर से धान क्रय की बात विज्ञापन में कही गई है। पैक्स / व्यापार मंडल द्वारा किसानों से धान अधिप्राप्ति के 48 घंटे के भीतर डीबीटी के माध्यम से भुगतान करने का आदेश है।

धान बेंचने के इच्छुक किसानों को कृषि विभाग के पोर्टल पर निबंधन कराना है, तभी वह पैक्स /व्यापार मंडल को धान बेंच सकेगा। सरकार का यही निर्देश है। यह पढ़ने-सुनने में बड़ा अच्छा लगता है। लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट है। पैक्स को धान बेंचने में बड़ा झोल है। पैक्स में धान देते समय प्रति क्विंटल 5 किलो की कटौती की जाती हैं। भुगतान के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है। मैं खुद इसका भुक्त-भोगी हूं।

दो साल पहले मैंने निबंधन करा कर पैक्स को धान बेचा था। कायदे से भुगतान मेरे बैंक खाते में होना चाहिए था। भुगतान में तीन महीना विलम्ब हुआ। बीसीओ, डीसीओ से शिकायत की। सब निर्थक। पैक्स प्रबंधक से गुहार लगाई। तब जाकर होली के बाद प्रति क्विंटल दो सौ रुपये की कटौती कर नगद भुगतान हुआ। किस आधार पर शिकायत करता? पैक्स से धान अधिप्राप्ति की रसीद ही नहीं दी जाती है। तबसे न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान बेंचने से तौबा कर लिया। हमारे गांव के एक किसान शत्रुघ्न प्रसाद बताते हैं कि 48 घंटे के अंदर भुगतान की बात सिर्फ छलावा है। बड़े भूस्वामियों ने काफी पहले से खेती करना छोड़ दिया है। वे अपनी जमीन बीस से तीस हजार रुपये प्रति बीघा की दर से छोटे किसानों को लीज पर दे दिए हैं। इसी में उनको फायदा है। लीज पर खेती करने वाले किसान सरकारी भाषा में गैर रैयत कहे जाते हैं। अक्सर वे भूमिहीन या सीमांत किसान होते है। फसल तैयार होते ही उन्हें लीज वाली जमीन की मालगुजारी देनी होती है। अगली फसल लगाने के लिए जुताई, खाद, बीज की तत्काल व्यवस्था करनी पड़ती है। ऐसे में वे पैक्स को धान बेंच कर भुगतान के लिए महीनों इंतजार नहीं कर सकते। पैक्स के पास भुगतान न करने के अनेक बहाने होते हैं। मजबूर होकर किसान व्यापारियों के हाथ औने-पौने दाम पर धान बेंच देते हैं। इससे उन्हें नगद पैसा मिल जाता है। युवा किसान बिंदेश्वर राय व्यापारी और पैक्स द्वारा धान क्रय का तुलनात्मक विश्लेषण करते हैं। उनका यह विश्लेषण एक क्विंटल धान पर आधारित है।

वे बताते हैं, पैक्स एक क्विंटल धान में 5 किलो बट्टा काट लेते हैं। फिर भुगतान में प्रति क्विंटल दो सौ रुपये की कटौती कर ली जाती है। कहते हैं, कटौती की यह राशि नीचे से ऊपर तक बांटी जाती है। पैक्स गोदाम तक एक क्विंटल धान का भांडा और पलदारी 20 रुपये लगता है। इस तरह उसे एक क्विंटल धान की कीमत 1995 रुपये मिलता है, वह भी तीन महीने बाद। ऐसे में यदि व्यापारी को 1900 रुपये क्विंटल की दर से धान बेच देने में किसानों को कोई हिचक नहीं होती है। वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र की एक किताब आई है — रुकतापुर। इस किताब मैं उन्होंने तथ्यों के आधार पर धान के एमएसपी की विस्तार से चर्चा की है। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान बेंचने में क्या कठिनाई होती है, इसका किसानों के हवाले से उल्लेख किया गया है। वास्तव में यदि सरकार किसानों को एमएसपी का लाभ दिलाना चाहती है तो इन बाधाओं को दूर करना होगा। क्रय एजेंसी पैक्स / व्यापार मंडल को पहले ही लक्ष्य के अनुरूप धान क्रय हेतु पर्याप्त पूंजी उपलब्ध कराकर किसानों को तत्काल भुगतान की व्यवस्था करनी होगी। इससे उन्हे बिचौलिये व्यापारियों के शोषण से मुक्ति मिल सकती है। मगर सवाल नीति का नहीं, नियत का है।

 

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ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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