हिंदुत्व : शैतानी सभ्यता की चुनौतियाँ

बांग्लादेश से लेकर कनाडा तक हिन्दू विरोध

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बाबा विजयेन्द्र
बांग्लादेश से लेकर कनाडा तक हिन्दू विरोध की लहर देखी जा सकती है। बंगलादेश की सारी घटनायें हमारे सामने हैं, कि किस तरह यहां के अल्पसंख्यक हिन्दू, बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा लगातार प्रताड़ना के शिकार हुए हैं। बांग्लादेश की सत्ता पलट गयी, पर हिंदुओं पर आक्रमण आज भी जारी है। कनाडा की भी यही स्थिति है। यहां हिंदुओं पर सिखों द्वारा हमला किया गया है। कनाडा में हिन्दू, सिख से कम ताकत रखता है इसलिए यहां सिख हिंदुओं पर आक्रमण करने की स्थिति में है।
भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक है और इनकी स्थिति वैसी हीं है जैसी स्थिति अन्य देशों के अल्पसंख्यक की है। अगर आपकी जाति या धर्म की स्थिति अच्छी नहीं है तो आप खौफ में जीने को अभिशप्त हैं। अल्पसंख्यक होना आज के दौर का बड़ा अभिशाप है। यह अभिशाप धर्म के स्तर पर ही नहीं, बल्कि धर्म के भीतर भी जिन्दा है। अल्पसंख्यक जातियों का जिन्दा रहना भी अभी संकट में है। अगर आप सत्ता बना और बिगाड़ नहीं सकते हैं तो आपका होना या न होना बेकार है। आप जिन्दा इसलिए हैं कि मर नहीं रहे हैं। यह है कमजोर संख्या की कहानी!
दोष देने और लेने के कई बहाने हैं। कुल मिलाकर मनुष्य समाज आज खौफ़जदा है। कभी भी कोई हिंसा का शिकार हो सकता है। कब कौन सूचना बन जाए, कहना कठिन है। युद्ध घर के भीतर हो या घर के बाहर, युद्ध जारी है। बिना युद्ध का जीना अब दुभर हो चुका है। जीना है तो स्वयं को युद्धरत रखना पड़ेगा।
आस्था और विश्वास का संकट इस दौर का बड़ा संकट है। मनुष्यता ही आज खतरे में है। काश हम पशु भी होते तो अच्छा होता? पाश्विकता हमेशा पाप नहीं है। न्यूनतम मर्यादा यहां अभी भी जिन्दा है। पर हम तो इससे भी गए गुजरे हैं। आज के मनुष्य का पशु से तुलना करना, पशु जगत का अपमान करना ही है। काम सारा हिंसक पशु सा, शक्ल से हैं हम आदमी?
उपयोगितावाद की नयी आंधी में हम अपने अस्तित्व से बेदखल हो चुके हैं। जो उपयोगी नहीं है वह निरर्थक है। इसीलिए तो विश्व की संस्थाओं ने दुनियां के सैकड़ो करोड़ की आबादी को ‘अतिरिक्त आबादी’ घोषित कर दिया है। ये अपने भरोसे जीए या मेरे, किसी व्यवस्था का इनसे कोई लेना देना नहीं है।
आज जितने भी प्रकार के उन्माद हैं सभी इसी नैरेटिवस के पार्ट हैं। हर स्थिति में मरना गरीबों को है। कभी राष्ट्र खतरे में होता है, तो कभी धर्म खतरे में आ जाता है। सच यही है कि कोई खतरा में नहीं है। खतरे में कोई है तो वह है मनुष्यता। धर्म या राष्ट्र मनुष्य के लिए है, या मनुष्य इनके लिए है। चारो तरफ सेट नेरेटिवस है। इसी सेट नैरेटिव्स पर पूरी दुनियां में हो हंगामा हो रहा है।
मनुष्यता, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के दलदल से कब बाहर निकेलेगी? कौन मसीहा मौजूद है अभी जो इस करुण मानवता की पुकार को सुन सके?
भारत से बड़ी आशा थी दुनियां को, पर यह आशा भी अब टूटती नजर आ रही है। यहां से प्रेम की आवाज उठ सकती थी, पर यह आवाज सियासी खेल में गुम होती जा रही है?
यहां के सभी धर्म अब मनुष्यता विरोधी हो चुके हैं। सभी जगह आग्रह और दुराग्रह पल रहे हैं। साधुता इतिहास हो रही है और भूगोल संकटग्रस्त है।
हिन्दू और मुसलमान अब निरर्थक हैं। इनका कार्य सत्ता के लिए है, शांति के लिए नहीं। अशांत समूह, शांति स्थापना की पहल नहीं कर सकता है। हमें नयी सभ्यता की तलाश करनी होगी। शैतानी सभ्यता में मनुष्यता घुट-घुट कर मर जाएगी। इनके अपने तर्क हैं। ये तर्क खोजते रहेंगे और देते रहेंगे। पर हमें क्या करना है? जीने लायक़ सभ्यता का निर्माण कैसे होगा? इस पर विचार करना जरूरी है। सत्ता कभी भी नया समाज पैदा नहीं कर सकती। हिन्दू और मुसलमान जैसे शब्दों के लिए भावुक होने की जरुरत नहीं है। ये सारे धार्मिक गिरोह अपनी विसंगति और विडम्बना के शिकार हो जाएंगे। इसके लिए हमें कुछ नहीं करना है।
हमें उस समूह निर्माण की तरफ बढ़ना चाहिए जहाँ अल्पसंख्यक बहुसंख्यक होने का आग्रह और दुराग्रह नहीं हो। आवश्यक नहीं है कि हम पुराने धर्म को जिन्दा ही रखें। नया धर्म हमें पैदा करना होगा। पुराने धर्मों के अनुभव हमारे सामने हैं। हमें युगधर्म की तरफ बढ़ना होगा। धर्म बासी हो चुके हैं। काश ! ये धर्म जीने लायक़ दुनियां बनाये होते? आओ ! मनुष्यता को बचाने के लिए नये तरीके का ईजाद करें।

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