बदरूप व्यवस्था की बजबजाती बयानबाज़ी

धरती का सच और आकाशी बयान

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डॉ योगेन्द्र

आज राँची में मतदान हो रहा है। यहाँ सुबह हल्की ठंड रहती है। रात में एक मोटी चादर लेकर सोना ज़रूरी है। लोगों ने मफ़लर, हॉफ स्वेटर, चिट आदि निकाल लिया है। नेताओं में जब से विचारों का अभाव हुआ है, तब से कुछ न कुछ उल्टे सीधे बयान देकर वे आत्मतुष्ट होते हैं। नाम का ज़िक्र नहीं करूँगा। एक नेता ने कहा कि हेमंत सोरेन जला हुआ ट्रांसफ़ॉर्मर है, उसे तुरंत बदल दीजिए। वे अपने दल के विचारों का प्रचार नहीं कर रहे। वे यह नहीं बता रहे कि झारखंड का जंगल, ज़मीन, लोग कैसे महफ़ूज़ रहेंगे और उसकी तरक़्क़ी के लिए क्या-क्या एजेंडा है? मैं दो हज़ार रूपये दूँगा, तो दूसरा ढाई हज़ार देने लगता है। कोई दो सौ यूनिट बिजली फ़्री कर रहा है तो कोई ढाई सौ पर आ जाता है। अख़बारों का मूड भी एकतरफ़ा है। एक दल की खबरों से वह भरा रहता है। डंडी मारने से किसी को लाभ होता है, तो वह घाटा क्यों उठायेगा, लेकिन पत्रकारिता की निष्पक्षता तो ख़तरे में है ही। नेताओं के मूल्य तो अवमूल्यन हुआ ही है, पत्रकारों और लेखकों के शब्दों का भी अवमूल्यन हुआ है।
समाज में डॉक्टर नाम का एक जीव होता है। कहा जाता है कि वह धरती का भगवान है। इस भगवान का भी अवमूल्यन कम नहीं हुआ है। ज़्यादातर क्लीनिक में काले धन का व्यापार चल रहा है। वह जो फ़ीस लेता है, उसकी रसीद नहीं देता। क्या आमदनी हुई, इसका कोई लेखा जोखा नहीं है। ऊपर से दवा कंपनियों और जांच घरों से गठबंधन। जिन दवाओं की ज़रूरत नहीं है, उसे भी मरीज़ खाये जा रहे हैं। जिस जाँच की ज़रूरत नहीं है, वह जाँच भी कराये जा रहे हैं। आम लोगों को कुछ पता नहीं कि उसके साथ क्या हो रहा है? थके हारे लोग क्या करें, कहाँ जायें? हम गर्व से उन्नत होते हैं, जब सुनते हैं कि उसके देश की अर्थव्यवस्था फ़ाइव ट्रिलियन की हो गई है, मगर हालत क्या है? केंद्र सरकार ने पाँच लाख का आयुष्मान कार्ड जारी किया है। बीमार होइए। तो आपका इलाज पाँच लाख तक फ़्री होगा। सुनने में भी अच्छा लगता है। लेकिन क्लीनिक के लिए पैसा लूटने का यह एक सुअवसर है। आप बीमार नहीं भी हैं तो आपको बीमार बता कर आपका इलाज किया जायेगा। गुजरात में एक अस्पताल है – ख्याति स्पेशलिटी हॉस्पिटल। इसके डॉक्टरों ने मेहसाणा ज़िले के बोरीसणा गाँव में एक सौ लोगों का हेल्थ जाँच की। 19 लोगों के बारे में इसने रिपोर्ट दी कि इन लोगों के दिल में दिक़्क़त है, इसका इलाज ज़रूरी है। इन सब लोगों के पास आयुष्मान कार्ड था। गाँव के लोग, भोले भाले। डॉक्टरों ने कहा कि मुफ़्त जाँच करेंगे। इन लोगों को अस्पताल में भर्ती की। फिर एंजियोग्राफ़ी की और इनमें सात लोगों का धड़ा धड़ एंजियोप्लास्टी कर दी। इनमें से छह लोगों की हालत बिगड़ गयी। दो मौत के हवाले हुए और चार के आसपास मौत मंडरा रही है। लेकिन आयुष्मान कार्ड भंज कर तैयार है। मज़ा यह है कि यह अस्पताल छह महीने में 350 एंजियोग्राफ़ी कर चुका है। हम धरातल पर ऐसे ही हैं- ठग, अपराधी और निष्ठुर। कोसने के लिए प्रधानमंत्री को कोसा जा सकता है कि जहॉं बीस वर्ष मुख्यमंत्री रहे, दस साल प्रधानमंत्री रहे, उस राज्य में ऐसी ठगी? मगर कोसने से क्या फ़ायदा? अस्पताल बदल जायेगा? व्यवस्था दुरुस्त हो जायेगी? आयुष्मान कार्ड जारी ही इसलिए हुआ है कि सब मिल कर लूटें, खायें, मौज मनायें। आयुष्मान कार्ड के माध्यम से जितने पैसे निकाले जा रहे हैं, उसमें कई सरकारी अस्पताल दुरुस्त हो जाते। सरकार अपने अस्पतालों को ठीक नहीं कर रही और लूट के लिए आयुष्मान कार्ड जारी कर रही है।

 

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डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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