डॉ योगेन्द्र
राजनीतिक तमाशा देखना है तो भागलपुर का हवाई अड्डा आइए। इसे देख कर आपको कभी नहीं लगेगा कि हम उस देश में रहते हैं जहाँ 205 लाख करोड़ के कर्ज में डूबे हैं और अस्सी करोड़ जनता पाँच किलो अनाज पर पलती है। मुझे एक कहावत याद आ रही है- ‘घर में भूंजी भांग नहीं, ड्योढ़ी पर नाच’। हम एक तरफ कहते हैं कि भारत में पैसे का अभाव है, युवा बेरोजगारी से पीड़ित हैं और लोग महंगाई से। करोड़ों लोग फुटपाथ पर सोते हैं। उस देश में प्रधानमंत्री की सभा पर करोड़ों फूँक दिया जाय, यह कहाँ की बुद्धिमानी है? यह पैसा किसका है? या तो टैक्स पेयर का है या जनता द्वारा वसूले टैक्स का। इस पैसे को इस तरह से उड़ाने का हक किसने दिया? इसलिए अगर कोई कानून नहीं बना है तो अपनी नैतिकता तो है। वैसे नैतिकता की बात करना बेईमानी है। कभी केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 8 नवंबर 2014 को कहा था कि भागलपुर और दरभंगा को जल्द ही आईटी का हब बनायेंगे। कम से कम दस साल बीत गए और आईटी पार्क का एक खंभा भी न गड़ सका। आज तक रविशंकर प्रसाद ने भागलपुर की जनता से माफी नहीं माँगी। खुद प्रधानमंत्री ने देश से कई वादे किए, उसे दुहराने में भी शर्म महसूस होती है। ये लोग राम के अनन्य भक्त कहे जाते हैं। जनता इनकी भक्ति पर फिदा है। राम के कुल का कथन है- ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाय।’ राम क्या थे और उनके अनन्य भक्त क्या हैं? बात और वचन का तो कोई मतलब नहीं रह गया है। हर सभा में लंबी फेंकना और फिर चुपके से मुकर जाना इनकी नियति बन चुकी है। एक धार्मिक देश की आत्मा को ऐसे अधार्मिकों ने अपहरण कर लिया है।
भागलपुर के हवाई अड्डे से हवाई जहाज उड़ाते-उड़ाते नेता से कुछ कबड़ न सका तो अब यहाँ से राजनीति उड़ान भरती है। मैंने भागलपुर में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी की आम सभाएं देखीं हैं, मगर प्रधानमंत्री का ऐसा जलवा नहीं देखा और उस प्रधानमंत्री का जिन्होंने चाय बेच कर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक सफर की है। इनकी महान सभा के लिए जो इंतजाम हैं, वह अमेरिकी राष्ट्रपति को भी हासिल नहीं होगा। इस मामले में वे अव्वल हैं। वे मजबूर होकर अमेरिका से समझौता कर आये हैं और अमेरिका सौगात में हाथ में हथकड़ियाँ और पैरों में बेड़ियां पहना कर अप्रवासी भारतीयों को वायु सेना के विमान में भेज रहा है। यही अमेरिका चीन, जर्मनी के अप्रवासियों के साथ ऐसा सलूक नहीं कर रहा है। हमारे यहाँ तो गतमरू विदेश नीति है। डरा- काँपता मन है। मैं सोचता रहता हूँ कि जो प्रधानमंत्री देश में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, उन्हें यह महसूस नहीं होता कि एक अरब चालीस करोड़ वाले देश को ऐसा बनाया जाय कि विश्व का कोई देश उसके नागरिकों के साथ अभद्रता पूर्वक पेश न आये। इनके दावे तो यह था कि वे ऐसा देश बनायेंगे कि अमेरिकी वीजा के लिए लाइन लगा देगा। काश, प्रधानमंत्री उस राह पर चल कर दिखाते। गुजरात के हैं। महात्मा गांधी भी गुजरात के थे। उनसे वे कम से कम थोड़ी सी सादगी उधार ले लेते। निर्धन देश की जनता की गाल पर ऐसी सभा तमाचे की तरह है। लोकतंत्र में इसकी भद्दी आवाज गूँज रही है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)