प्रेमचंद की समाजवाद के प्रति आस्था

समाजवाद के प्रति आस्था

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ब्रह्मानंद ठाकुर
मुंशी प्रेमचंद रूस की समाजवादी क्रांति से काफी प्रभावित थे। अपनी इस समझ के आधार पर वे भारत में भी सोवियत संघ जैसी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था के हिमायती बन गये। तब उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था, आने वाला जमाना अब मजदूरों और किसानों का है। दुनिया की रफ्तार इसका सबूत दे रही है। हिंदुस्तान भी इस हवा से बेअसर नहीं रह सकता। हिमालय की चोटियां भी उसे इस हमले से नहीं बचा सकती। जल्द या देर से, शायद जल्द ही, हम जनता को मुखर ही नहीं, अपने अधिकारों की मांग करने वालों के रूप में देखेंगे और तब वही अपने किस्मतों की मालिक होगी। (पुराना जमाना, नया जमाना) प्रेमचन्द अपने समय में समाज में चल रहे वर्ग संघर्ष से अच्छी तरह वाकिफ थे। वे पूंजीपति वर्ग की असली मंशा को खूब अच्छी तरह से समझ रहे थे। तभी तो उन्होंने अपनी कहानी आहुति में स्पष्ट शब्दों में रुक्मिणी से कहलवाया है, अगर स्वराज आने पर भी सम्पत्ति का यही प्रभुत्व रहे और पढ़ा-लिखा समाज यूं ही स्वार्थ में अंधा बना रहे, तो मैं कहूंगी ऐसे स्वराज का न आना ही अच्छा है। जिन बुराइयों को दूर करने के लिए आज हम जान हथेली पर लिए हुए हैं, उन्हीं बुराइयों को क्या प्रजा इसलिए सिर चढाएगी कि वे विदेशी नहीं, स्वदेशी हैं। कम से कम मेरे लिए स्वराज का अर्थ यह नहीं कि जान की जगह गोविंद बैठ जाए।मैं समाज में ऐसी व्यवस्था देखना चाहती हूं जहां कम से कम विषमता को आश्रय न मिले। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था, हम पूंजीपतियों का स्वराज नहीं चाहते, गरीबों, काश्तकारों और मजदूरों का स्वराज चाहते हैं। इससे साबित होता है कि प्रेमचंद ने बड़ी दृढ़ता के साथ समाजवाद में अपनी आस्था व्यक्त की। उनका मानना था कि समाजवाद का विस्तार हो या न हो लेकिन एक आदर्श समाज का उदाहरण जरूर सामने आ गया है। भारत जैसा देश भले ही इससे अंजान रह सकता है लेकिन सारी दुनिया समाजवाद की ओर बढ़ रही है। सन् 1933 में कांग्रेस और सोशलिज्म शीर्षक अपने लेख में उन्होंने लिखा- भारत जेसे देश में जहां आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबों का है, जिनमें पढ़े-लिखे और अनपढ़ सब तरह के मजदूर भी है। सोशलिज्म के सिवा उनका कोई आदर्श हो ही नहीं सकता। अपने एक अन्य लेख ‘स्वराज के फायदे’ में उन्होंने लिखा, अपने देश का पूरा-पूरा इंतजाम जब प्रजा के हाथों में हो, उसे स्वराज कहते हैं। समाजवाद के प्रति इसी आस्था ने प्रेमचंद को अपने हक-अधिकार से वंचित शोषित -पीडित, जुल्म के शिकार आवाम की पीड़ा को सशक्त अभिव्यक्ति देने की प्रेरणा दी।

 

Faith in socialism
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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