डॉ योगेन्द्र
एक किसान था। उसे अकूत जमीन-जगह, गाय- बैल थे। अलग-अलग मौसम में अलग-अलग फसलें लगती थी। वह काम से परेशान रहता। चेहरे पर हर वक्त तनाव बना रहता। एक दिन एक साधु आया और किसान को परेशान देख उसने उससे पूछा- ‘तुम इतने परेशान क्यों रहते हो? किसान ने कहा-‘बाबा, मैं तो अपने काम से परेशान रहता हूँ। एक पूरा करता हूँ, दूसरा आ जाता है। जिंदगी तबाह हो गई है।’ साधु ने कहा कि मैं तुम्हें एक ऐसी शक्ति देता हूँ, जिससे तुम्हें काम से मुक्ति मिल जायेगी, लेकिन एक शर्त है। उस शक्ति को हर वक्त काम देना होगा। अगर तुम काम नहीं दे सके तो वह तुम्हें मार कर खा जाएगा।’ किसान ने सोचा कि मेरे पास तो बहुत काम है। जो भी शक्ति होगी, उसे काम की क्या कमी होगी? यह सोचकर उसने स्वीकृति दे दी। साधु ने उसे एक प्रेत दे दिया। किसान ने अंजर- बंजर से लेकर सभी जमीन पर खेती करवायी। किसान जो कहता, प्रेत तुरंत काम कर देता। कुछ दिनों में ही सब काम समाप्त हो गए। प्रेत बार-बार काम मांगने लगा। अब किसान परेशान होने लगा। उसे भय लगने लगा कि प्रेत उसे निगल न जाए। उसने साधु को याद किया। साधु आया और किसान से कहा कि एक बाँस लाओ। किसान ने कहा कि आँगन में बाँस गाड़ दो। बाँस गाड़ दिया गया और तब साधु ने किसान से कहा कि प्रेत को कहो कि वह बाँस पर चढ़े और उतरे। प्रेत अब मुश्किल में फँस गया। वह साधु से गिड़गिड़ा कर माफी माँगने लगा।
यह कथा पुरानी है, लेकिन नये युग पर बहुत मौजू है। अभी तक मनुष्य ने जो वैज्ञानिक औजार बनाए, उस पर मनुष्य का नियंत्रण था। यहाँ तक कि नागासाकी और हिरोशिमा पर भी जो बम गिराए गए, उस पर मनुष्य का नियंत्रण था। बम खुद जाकर गिरा नहीं था, गिराया गया था। आज मनुष्य ने कृत्रिम मेधा को जन्म दिया है। कृत्रिम मेधा यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस। संक्षिप्त में एआई। आप अपना स्मार्ट फोन खोलते हैं। आप यूट्यूब पर जाते हैं। दो चार वीडियो देखते हैं। थोड़ी देर में आप महसूस करेंगे कि उसी तरह की अनेक वीडियो आपके समक्ष आ रहे हैं। आपने रवीश कुमार के वीडियो देखे। आगे आप देखेंगे कि रवीश कुमार के अन्य वीडियो आने लगे हैं यानी स्मार्ट फोन ने आपके नेचर को समझ लिया है। अब इससे भी एक कदम आगे बात चली आई है। ‘नेक्सस’ नामक किताब में युवाल नोआ हरारी लिखते हैं- ‘एआई इतिहास की ऐसी पहली प्रौद्योगिकी है, जो स्वयं ही निर्णय ले सकती है और नये विचारों को जन्म दे सकती है। इसके पहले के सारे इंसानी आविष्कारों ने मनुष्य को सक्षम बनाया था, क्योंकि नया औजार कितना ही शक्तिशाली क्यों न रहा हो, इसके इस्तेमाल का निर्णय हमेशा हमारे हाथों में हुआ करता था। चाकू और बम खुद तय नहीं करते कि उन्हें किसकी हत्या करनी है। वे गूँगे औजार हैं, जिनमें सूचना को संचालित करने और स्वाधीन निर्णय लेने के लिए आवश्यक बुद्धिमत्ता का अभाव होता है। इसके विपरीत, एआई खुद ही सूचना प्रॉसेस करने की बुद्धि की मांग करता है और इसलिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में मनुष्यों की जगह ले लेता है।” प्रेत पर तो नियंत्रण पा लिया गया, लेकिन अ-मानवीय बुद्धि द्वारा लिए जाने वाले फैसलों पर संसार कैसे नियंत्रण करेगा, यह मानव सभ्यता के सामने बड़ी चुनौती है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)