डॉ योगेन्द्र
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और ट्रंप के बीच तनातनी के बाद यूरोपीय देशों में गर्मी आ गई। यूरोपीय देशों की कुल आबादी 50 करोड़, अमेरिका की 30 करोड़ और रूस की बारह करोड़ है। यूरोपीय देशों का कहना है कि यूक्रेन की रक्षा के लिए हम 50 करोड़ की आबादी वाले यूरोपीय देश तीस करोड़ की आबादी वाले अमेरिका के सामने बारह करोड़ वाले रूस से रक्षा के लिए गुहार क्यों लगायें? अगर संख्या ही रक्षा की वजह हो सकती है तो अकेले भारत में तीन यूरोप रहता है। आबादी से कुछ नहीं होता। होता है आत्मविश्वास से। आबादी में तो हम विश्वगुरु हैं। कोई हमसे सीखे कि आबादी बढ़ाने के नुस्ख़े क्या हैं? हम इस नुस्ख़े को अपने नाम कर ले सकते हैं, मगर आत्मविश्वास कहाँ से लाओगे? शेयर बाजार भदभद कर गिर रहा है और हमारे प्रधान सोमनाथ मंदिर में ललाट पर चंदन लपेसे दिवास्वप्न देख रहे हैं। भारतीयों को कौन कॉन्फ़िडेंस देगा? डेढ़ अरब आबादी वाले देश के नागरिकों को तीस करोड़ की आबादी वाले देश के नेता ट्रंप ने जंजीरों में बाँध कर वायुसेना के विमान से भारत की धरती पर उतारा, तब हमारे महानुभाव ट्रंप के सामने मुट्ठी बाँधे समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे थे। कॉन्फ़िडेंस क्या बाजार से खरीद कर लाइएगा? जलेंस्की को जोकर कहें या और कुछ- उसने ट्रंप को जवाब दिया। वे कमजोर नहीं पड़े और फिर ब्रिटेन का रूख किया। वहाँ यूरोपीय देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ बैठक की। हश्र चाहे जो हो, वे झुकने के लिए तैयार नहीं हुए। कनाडा के राष्ट्रपति ट्रूडो भी नहीं झुके।
यह गणित हमें समझना चाहिए। हम झूठ बोल कर और लोकलुभावन नारे देकर लोगों को भीड़ जरूर बना सकते हैं, कॉन्फ़िडेंस नहीं ला सकते। भारत के प्रधानमंत्री घर में सिंकिया बादशाह हैं। बाहर भी इन्होंने देश की प्रतिष्ठा को धूमिल ही किया है। कोई नहीं चाहता कि तृतीय विश्व युद्ध हो। मगर आसमान में काले बादल मँडरा रहे हैं। वे कहाँ बरसेंगे, कहा नहीं जा सकता? जब भाई और भाई में झगड़ा होता है तो हानि परिवार को होती है। विश्व के दो देश अगर लड़ते हैं तो वैश्विक बिरादरी को हानि होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ पिछले तीन वर्षों से मौन साधे हुए है। न रूस पर, न यूक्रेन पर कुछ बोलता है, न किसी समझौते के लिए पहल कर रहा है। क्योंकि उनके दाता यूक्रेन को हथियार बेच रहे हैं और उसके खनिजों को लूटने के लिए तत्पर है। नखदंत विहीन संयुक्त राष्ट्र संघ वीटो देशों के नौकर की तरह ही है। उसकी अपनी कोई स्वतंत्र औकात नहीं। युद्ध के पीछे धनपशु देशों की साजिश भी रहती है। कोई देश तरक्की कर रहा है तो उसे गिराना कैसे है? अपने राष्ट्र हित को साधना कैसे है? विश्व में कौन सी नीतियाँ चलानी है? विश्व कैसे अपने हाथों में रहेगा? हथियारों का व्यापार कैसे करना है? यूक्रेन को कोई मदद करता है तो उसके पीछे उसके स्वार्थ भी हैं। अमेरिका मदद करे या यूरोपीय देश- बाद में कस कर वसूली करता है। भारत एक विशाल देश है, मगर उसे प्रेरित करनेवाली कोई शख्सियत नहीं है। इस देश में कम प्रतिभा या पोटेंशियल नहीं है, लेकिन जो नेतृत्व कर रहे हैं, वे नफ़रत, हिंसा और घृणा में ही प्रतिभा को नष्ट कर रहे हैं।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)