समाज के विकास में बाधक है यह वैचारिक शून्यता

वैचारिक शून्यता के संकट से गुजर रहा है समाज

0 577

ब्रह्मानंद ठाकुर
इन दिनों‌ हमारा समाज सैद्धांतिक और वैचारिक शून्यता के गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। यह स्थिति नये समतामूलक नूतन समाज के निर्माण की राह में बड़ी बाधा है। ऐतिहासिक रूप में देखा जाए तो किसी भी समाज के विकास के लिए, जर्जर हो चुकी समाज व्यवस्था की जगह नूतन समाज व्यवस्था की स्थापना के लिए मानवीय मूल्यबोध पर आधारित क्रांतिकारी सिद्धांत और जीवन-दर्शन पहली जरूरत होती है। पुरातन विचारों से ग्रस्त समाज जब विकास की दौर में पिछड़ने लगता है, उसके पुराने संस्कार इस स्थिति से बाहर निकलने में बाधक बन जाते हैं, समाज की प्रगति जब रुक जाती है तब एक क्रांतिकारी सिद्धांत और उसकी विचारधारा ही जर्जर हो चुके पुराने समाज को ध्वस्त कर एक नूतन और अतीत के समाज की अपेक्षा एक प्रगतिशील और उन्नत समाज व्यवस्था का निर्माण करती है। मानव समाज की आदिम समाज व्यवस्था से लेकर गोष्ठीबद्ध समाज, सामंती समाज और तब पूंजीवादी समाज व्यवस्था की स्थापना ऐसे ही क्रांतिकारी सिद्धांत के आधार पर हुई है। इतिहास गवाह है कि अपने देश में आजादी आंदोलन के दौरान आंदोलन के प्रभाव से आम जनता का सैद्धांतिक और वैचारिक स्तर में जो विकास हुआ, उसी से देशभक्ति की भावना पैदा हुई थी। यही कारण रहा कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दमन के विरोध में यहां की जनता आपसी भेदभाव को त्याग कर एकजुट हुई थी। काफी त्याग और कुर्बानियों के बाद हमारा देश आजाद हुआ। अंग्रेजों के सत्ता से हटने के बाद राजसत्ता पर पूंजीपति वर्ग का कब्जा हो गया। आज भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सत्ता पर यही वर्ग काबिज है। मानवतावादी सिद्धांत और मानवीय मूल्यबोध आज इन शासक वर्ग के लिए सुविधा के साधन बन गये हैं। कहने को तो यह लोकतंत्र है। लोकतंत्र में हर 5 साल पर चुनाव होते हैं। जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है और यही प्रतिनिधि सरकार बनाते और चलाते हैं। वास्तव में ऐसा होता नहीं। चुनाव में जीत धनबल, बाहुबल और विभिन्न प्रचार माध्यमों के सहारे हासिल की जाती है। जाति, धर्म और सम्प्रदाय के आधार पर मतदाताओं को गोलबंद किया जाता है। यह सब देख-सुन कर आम जनता राजनीति से विमुख हो चुकी है। संकटग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था और जनता के नैतिक, सांस्कृतिक स्तर में लगातार हो रही गिरावट के कारण भ्रष्टाचार, अनाचार, परिवार और भाई-भतीजावाद, अवसरवाद, व्यक्तिगत स्वार्थ ने समाज को बुरी तरह जकड़ रखा है। राजनीति के मामले में कहीं भी न्यूनतम लौकतांत्रिक मूल्य और नैतिकता दिखाई नहीं दे रही है। सर्वत्र आदर्श और मूल्य का संकट है। तमाम प्रचार माध्यमों द्वारा अश्लीलता, यौनता का प्रचार किया जा रहा है। पार्श्विक प्रवृतियां बढ़ रही हैं। इनसे छात्र नौजवानों की नैतिक रीढ़ टूट रही है। एक तरह से वैचारिक शून्यता की स्थिति है। यह वैचारिक और सैद्धांतिक शून्यता नूतन समाज के निर्माण में बड़ी बाधा है।

 

Ideological void is an obstacle in development
ब्रह्मानंद ठाकुर

 

 

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
Leave A Reply

Your email address will not be published.