अपराध की दुनिया ऑक्टोपस की तरह

व्यवस्था ही असली अपराधी

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डॉ योगेन्द्र
गोली चली और कोयला व्यापारी के हाथ और गले को छूती निकल गई। सड़क पर अफरातफरी मच गयी। लोग इधर-उधर भागने लगे। गोली चला कर शूटर चंपत हो गए। इसके बाद सोशल मीडिया पर अपराधी का संदेश आया- ‘आज तो बच गए बच्चू, आगे नहीं बचोगे। ‘पुलिस तब भी पता नहीं कर पा रही कि शूटर कौन है, उसके सिर पर हाथ किसका है? कयास लगाए जा रहे हैं। पुलिस कह रही है कि सोशल मीडिया पर जो अपराध स्वीकार कर रहा है, उसे अजरबैजान की पुलिस ने गिरफ़्तार कर रखा है। इसके दो मतलब हैं। पहला- अपराधी अगर अजरबैजान पुलिस के गिरफ़्त में है तो वह गिरफ़्तार होकर भी गिरफ़्तार नहीं है या उसे इतनी छूट है कि वह सोशल मीडिया पर लिख सके। दूसरे- यह भी संभव है कि कोई उसका नाम लेकर सोशल मीडिया पर लिख रहा है। दुनिया की रफ्तार तो बहुत तेज है। पुलिस के पास भी डेटा जमा करने के बहुत से साधन हैं। वह पता तो कर ही सकती है कि कौन पोस्ट कर रहा है? मजेदार बात यह है कि हर अपराध के बाद वह सोशल मीडिया पर उग आता है। स्मार्टफ़ोन, नेट, एआई और हजारों तरह के साधन। मगर अपराधी पकड़ में नहीं आ रहे। वे कइयों से रंगदारी मांग चुका है जिसमें ठेकेदार, कोयला व्यवसायी, कारोबारी आदि शामिल हैं। झारखंड की खनिज संपदा वर्षों से माफियाओं को शरण देती है और माफिया आपस में गोलाबारी करते रहते हैं। दरअसल अपराध पर अपराध जन्म लेता है। व्यवसाय भी अब व्यवसाय की तरह नहीं हो रहे। अगर किसी दवा के उत्पादन में दस रुपए की लागत है तो उसे बाजार में सौ रुपये में बेचा जा रहा है। एक तरफ रंगदारी है, दूसरी तरफ़ संगठित लूट है। दोनों अपराध है। एक सभ्य ढंग से है, एक बेढंगा है- खुला, भयावह और नंगा। दोनों अपराध को पालने वाला भी है जो व्यवस्था में निहित है। एक घनचक्कर है। व्यवस्था ही असली अपराधी है। यह व्यवस्था ढोंग करती रहती है। वह इस तरह से संचालित होती है कि आम लोगों को लगता है कि उसकी कोई गलती नहीं है। वह तो न्यायाधीश है। पवित्र- पावन। यह व्यवस्था क्या यह नहीं जानती कि कारोबार कैसे हो रहा है? पैसा कैसे कमाया जा रहा है? अपराध का ठीक से विवेचना करनी होगी। आज हम दवा खरीदते हैं, खाने का सामान लेते हैं और हम आश्वस्त नहीं होते कि यह सामान शुद्ध है? तेल में मिलावट, घी में मिलावट, सब्जी-फल में बेईमानी। क्या व्यवस्था इससे अनभिज्ञ रहती है? सड़कों पर गोलियों की तड़तड़ाहट के पीछे बेरोजगारी भी है। जो शूटर होते हैं, वे क्या अमीर घर के बच्चे हैं? मजबूरी युवाओं को अपराध में धकेलती है। उसका बेजा इस्तेमाल सफेदपोश करते हैं। अपराध की दुनिया बहुत मजबूत और बलशाली है। रांची में शूटर है, शूटर पर मयंक सिंह है, मयंक सिंह पर अमन साव है और अमन साव पर लौरेंस विश्नोई गैंग है। लौरेंस विश्नोई गैंग भी हवा में नहीं पल रहा। उसके माथे पर भी किसी का हाथ है और यह हाथ व्यवस्था का है। अपराध की दुनिया ऑक्टोपस की तरह है। इसलिए इसका आकलन और विवेचन एकतरफा मत कीजिए। इसके तरह तरह के कई आयाम हैं।

Crime is like an octopus
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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