नशाबंदी का एक नायाब अभियान

समाज के पुनर्निर्माण का कार्य

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ब्रह्मानंद ठाकुर
खबर हरियाणा के एक गांव की है। बीते 7 मार्च को यहां सोनीपत जिले के एक गांव हूल्लाहेडी में आल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन की ओर से नशा विरोधी कार्यक्रम चलाया गया। कार्यक्रम में काफी संख्या में ग्रामीणों ने पूरे उमंग और उत्साह से भाग लिया। यह कार्यक्रम पूर्व नियोजित था। इससे पहले ही गांव में घर-घर जाकर लोगों से नशा विरोधी पोस्टर छपवाने के लिए उसका लागत खर्च इकट्ठा किया था। फिर उन्हीं व्यक्तियों के नाम से पोस्टर बनवाया गया और उनके ही घर पर इस पोस्टर को लगाया गया। खासियत यह रही कि स्वयं उसी व्यक्ति ने इस पोस्टर को अपने घर पर लगाया, जिसके नाम से पोस्टर बनवाया गया था। इस कार्यक्रम में गांव के लोगों ने बड़े उमंग और उत्साह के साथ हिस्सा लिया। उन लोगों ने कार्यक्रम में शामिल लोगों का स्वागत भी किया। उस दिन आठ गांवों के नागरिकों के नाम पोस्टर लगाए गए और सभी ने इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की अपील की। यह कार्यक्रम नशा विरोधी लोगों द्वारा अपनी आवाज बुलंद करने के उद्देश्य से किया गया था, ताकि इलाके में नशाखोरी के विरोध में आवाज को बुलंद किया जा सके। कार्यक्रम के शुरुआत में ही बहुत अच्छी सफलता मिली। ग्रामीणों से मिल रहे सक्रिय सहयोग और इस कार्यक्रम की सफलता को ध्यान में रखते हुए आगे भी यह कार्यक्रम जारी रखने की बात संगठन द्वारा कही जा रही है। जाहिर है कि इस कार्यक्रम से भारी संख्या में लोग जुड़ेंगे और नशाबंदी के पक्ष मे एक ताकतवर संगठन खड़ा होगा। जब लोग संगठित होंगे और उनकी चेतना का विकास होगा, तभी नशाखोरी से समाज को छुटकारा मिलेगा। अब थोड़ी चर्चा अपने बिहार में लागू शराबबंदी कानून की। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 9 जुलाई, 2015 को महिलाओं के एक कार्यक्रम में कहा था कि यदि विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में उनकी सरकार बनी तो वे बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू करेंगे। उनकी सरकार बनी और 1 अप्रैल 2016 को सूबे में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू हुआ। मुझे याद है, इस शराबबंदी कानून के समर्थन में तब पूरे राज्य में मानव शृंखला बनी थी। प्रखंड स्तर पर स्कूली बच्चो, महिलाओं, युवाओं को इसमें शामिल किया गया था। इसमें सरकारी तंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका थी। कुछ सामाजिक संगठन भी उस मानव- शृंखला में औपचारिक रूप से शामिल हुए थे। शराबबंदी के समर्थन में सरकार की ओर से दिवाल लेखन भी कराया गया था। कहा जाएं तो यह सब सरकार के स्तर से ही किया गया। सामाजिक संगठनों की इसमें कोई भूमिका अब नजर नहीं आ रही है। बिहार में शराबबंदी कानून की जो स्थिति है उसके बारे में बताने की जरूरत नहीं है। राजनीतिक दलों द्वारा आये दिनों इसकी सफलता और विफलता पर दावे -प्रति दावे किए जा रहे हैं। कोई भी राजनीतिक दल, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन बिहार में शराबबंदी को सफल बनाने के प्नति गंभीर नहीं है। ऐसे में हरियाणा के सोनीपत के गांवों में चलाए जा रहे नशा विरोधी कार्यक्रम को नायाब मैंने इसलिए कहा है कि इसमें व्ययापक जनभागीदारी है। यह कार्यक्रम आल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन द्वारा शुरू किया गया है। समाज के पुनर्निर्माण का कार्य सिर्फ कानून बना कर नहीं किया जा सकता। इसके लिए व्यापक जनभागीदारी जरूरी है। इतिहास भी यही बताता है। उच्च नीति-नैतिकता, मूल्यबोध और क्रांतिकारी सिद्धांत से लैस राजनीतिक पार्टी के नेतृत्व में चलाए गये जनांदोलन को सफल बना कर ही अंधविश्वास, रूढ़िवादिता और समाज में व्याप्त नाना प्रकार की विकृतियों से मुक्त नूतन समाज व्यवस्था का निर्माण हो सकता है। सोनीपत के गांव में व्यापक जन भागीदारी से चलाए जा रहे नशा मुक्ति कार्यक्रम को इसी नजरिए से देखने की जरूरत है।

A unique campaign against drug addiction
ब्रह्मानंद ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)
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