डॉ योगेन्द्र
मैं बचपन में मछली पकड़ने जाता था। जब बहुत पानी रहता था तो बंशी से मछली मारता था और जब पानी घट जाता था तो पानी घिटोर कर मछली मारता था। चेलबा, पोठिया, कतला जैसी मछलियाँ तो बरबरा कर पानी के सतह पर आ जाती थीं। गैंची, टेंगरा, बुआरी और गरई जैसी मछलियाँ किधोर पानी को भी थोड़ी देर थाम लेतीं। उसमें गरई तो धरती पकड़ मछली है। उसे पकड़ता तो वह फिसल फिसल जाती। मोहन भागवत जी की हालत गरई मछली की तरह है। उनके बयान परस्पर विरोधी लगते हैं, मगर सभी बयान के निहितार्थ एक से हैं। उनका एक ही काम है और वह है आज़ादी को झूठा बताना और अपने तथाकथित संविधान विरोधी बातों को स्थापित करना। उन्हें मतलब नहीं है कि देश कर्ज में डूब रहा है, डालर की तुलना में रूपए का अवमूल्यन हो रहा है, महंगाई बढ़ रही है, बेरोजगारी चरम पर है, शिक्षा की बिक्री हो रही है, पूँजीपतियों की लूट चरम पर है, भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है, गैर बराबरी बढ़ रही है, हिन्दू जाति वाद में पिस रहा है, अंधविश्वास बढ़ता जा रहा है। ऐसे बुरे वक्त में जब 2014 में देश पर जो कर्ज 55 लाख करोड़ था, अब दो सौ करोड़ के पार है, मोहन भागवत कह रहे हैं कि असली आजादी 22 फरवरी 24 में मिली। ऐसे लोगों के पट्ट शिष्य नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बयानों को देखिए तो इनका असली चेहरा समझ में आयेगा। पहली बात यह है कि ये सब अपने वचन पर नहीं टिकते। हर दिन बाजीगर बन नये नये रूप दिखाते हैं। अगर आजादी 2024 में मिली तो 1947 के बाद 78 वर्ष तक हम सब गुलाम ही थे? दस वर्ष तक नरेंद्र मोदी जी भी गुलाम भारत के प्रधानमंत्री थे?
दरअसल हम सब एक बड़े खतरे की ओर बढ़ रहे हैं। देश वहाँ जा रहा है, जहाँ समता, बंधुत्व व भाईचारे का कोई अर्थ नहीं रहेगा। हम डॉ अम्बेडकर के द्वारा रचित संविधान के दायरे में नहीं, मनु द्वारा रचित मनुस्मृति के दायरे में जियेंगे। आँख से अंधा भी बता सकता है कि आजादी के संघर्ष में भगत सिंह सहित हजारों लोग शहीद हुए, गांधी, पटेल, मौलाना आजाद, सुभाष चन्द्र बोस, डॉ लोहिया, जयप्रकाश नारायण जैसे लाखों लोगों ने संघर्ष किया। बरसों बरस जेल की सजा भुगती, लाठियाँ खाईं। हिंसक और अहिंसक सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की। जालियाँवाला नरसंहार हुआ। संविधान सभा ने दो वर्षों तक बहस कर संविधान बनाया। लोकतांत्रिक संस्थाएं बनीं। उस पूरी परंपरा और आजादी को मोहन भागवत ने झूठा कहा। 1926 में बना मोहन भागवत का संगठन अंग्रेजों के साथ खड़ा था और स्वतंत्रता सेनानियों को पकड़वा रहा था। सोचिए कि हम सब किस दौर पर हैं? उनका एक संगठन है जिसमें कभी चुनाव नहीं होता, न सदस्यता होती है और एक जाति विशेष का उस पर कब्जा है। मुझे तो उससे ज्यादा नीतीश कुमार, नायडू और चिराग पासवान जैसे लोगों पर गुस्सा आ रहा है। झूठ रोप और बो कर राज्य सत्ता को कब्जा करने वाले को हटाने का जब अवसर आया तो ये लोग उनकी बैशाखी बने बैठे हैं। वक्त तो किसी को माफ नहीं करता। इन लोगों को इतिहास माफ नहीं करेगा। सरदार पटेल ने ठीक ही कहा था कि इनकी बात परस्पर विरोधी होते हैं और ये विश्वास के काबिल नहीं हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)