हरियाणा में भाजपा की हार के मायने

अनुमानों के आधार पर कहा जा सकता है, कांग्रेस की हरियाणा में वापसी

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बाबा विजयेन्द्र

दस वर्षों के बाद भाजपा सत्ता से बेदखल हो रही है. तमाम अनुमानों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस की हरियाणा में वापसी हो रही है. कांग्रेस की इस जीत का यह अर्थ नहीं है कि कांग्रेस ने कोई नया नैरेटिव्स हरियाणा को दिया है? कांग्रेस ने अपनी नीतियों को जनता के सामने रखने के बजाय सरकार की नीतियों का पुरजोर विरोध किया है.लोकसभा के मुद्दे दुहराये गए. संविधान पर खतरा और नफरत के बाजार पर बहुत बात कांग्रेस द्वारा नहीं की गयी. अग्निवीर, जवान, किसान और पहलवान जैसे मुद्दे लोकसभा से अलग मुद्दे यहां बहुत ही असरदार रहा.

हरियाणा यानी हरित प्रदेश यानी खेती किसानी का पर्याय ही है. भाजपा सरकार की नीतियाँ किसानों को पसंद तो आयी नहीं, ऊपर से प्रताड़ना अधिक झेलनी पडी? किसानों को लेकर भाजपा सरकार की बड़ी हठधर्मिता रही है. अक्सर ये बातें कही जाती रही हैं कि किसान एक असंगठित क्षेत्र है. किसान संगठन कभी चुनाव को प्रभावित नहीं करता. क्योंकि किसान आंदोलन के बाद योगी आदित्यनाथ की जबरदस्त वापसी हुई थी. खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान संगठन चुनाव को प्रभावित करने में असफल रहा था.

किसान आंदोलन ने यह अवधारणा अवश्य निर्मित कर दी कि भाजपा सरकार केवल कुछ लोगों के हितों की रक्षा के लिए ही सरकार में है. इस अवधारणा का सीधा असर हरियाणा चुनाव के परिणाम पर दिखता हुआ नजर आ रहा है. कांग्रेस की वापसी किसानों के मुद्दे की ही वापसी है. हरियाणा में हार भाजपा सरकार के जिद्द की हार है.

चुनाव के दौरान भी भाजपा नेताओं की जो शारीरिक भाषा थी वह हारने वाली ही थी. यह भाजपा संगठन की हार कम, भाजपा सरकार की हार ज्यादा है. सरकार की नीतियाँ लोगों को विल्कुल पसंद नहीं आयी. भाजपा संगठन आधारित पार्टी है इसलिए जज्बाती होकर चुनाव लड़ती है. सूपड़ा साफ होने वाली स्थिति कहीं नहीं होती. यह स्थिति हरियाणा में भी नहीं दिख रही है.

जम्मू कश्मीर में दस साल बाद चुनाव हो रहा है. भाजपा यहां मजबूत होती दिखाई दे रही है. यहां भी जो ताकत मिल रही है यह हिंदुओं की ही ताकत है. भाजपा की किसी सिद्धांत और विचार की जीत नहीं मानी जा सकती है. भाजपा एक राजनीतिक पार्टी के नाते अपने को समग्रता में प्रस्तुत नहीं कर पायी.भले ही कम ही वोट मिलता पार्टी को, लेकिन यह वोट अगर हर तरफ से आता तो बेहतर होता. एक राष्ट्रीय पार्टी का होना और एक हिन्दू पार्टी होना,दोनों अलग-अलग विषय हैं. दस वर्ष का शासन कम नहीं होता है. भाजपा एक नयी राजनीतिक-संस्कृति का निर्माण कर सकती थी जो नहीं किया? तात्कालिक लाभ प्राप्त करना ही चेतना के केंद्र में बनी रही. पार्टी इससे बाहर निकल नहीं पायी.

आठ अक्टूबर के बाद अष्टदल कमल बिखरता नजर आएगा. अमित शाह और मोदी की जोड़ी खतरे में होगी. कांग्रेस की ज्यादा चर्चा यहां ज्यादा नहीं कर पा रहा हूं कारण साफ है कि कांग्रेस को अभी और आगे जाना है. कांग्रेस के लिए यह जीत एक पड़ाव साबित होगी. लेकिन भाजपा के लिए तो यह खतरे की घंटी ही है? संघ का सौ वर्ष पूरा हो रहा है. संघ की झोली में ऐसी विफलता का आना ठीक नहीं है. चुनाव परिणाम के बाद संघ पूरी ताकत लगाएगा कि किस तरह यह नेतृत्व बदला जाए? पार्टी का अध्यक्ष भी अब गुजरात लॉबी से बाहर के होने जा रहे हैं. आमूल चूल बदलाव होना तय है. इस परिणाम का असर झारखण्ड,महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के उपचुनाव पर भी पड़ेगा. कांग्रेस की वापसी कांग्रेस को मजबूत बनाएगी. क्षेत्रीय दल जिस तरह आँख दिखाते रहे हैं,यह अब नहीं होगा.

इंतज़ार करना है दो दिन का. आठ की सुबह राजनीति की नयी सुबह होगी. यह परिणाम हरियाणा के लिए महत्वपूर्ण तो है ही, पूरे हिंदुस्तान के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगी.

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