ज्योतीन्द्र नाथ प्रसाद
शहर का नाम है हरिद्वार यानी हरि के द्वार पर। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हरिद्वार के बारे में कहते हैं यह देवभूमि है-जिधर देखो उधर देव हैं।पर ये सभी प्रस्तर की मूर्तियां है निस्पंद, असंवेदनशील। यहां कोई रामकृष्ण परमहंस नहीं है जो किसी स्वामी विवेकानंद सरीखे भक्त को मां काली की जीवंत मूर्ति का दर्शन करा सके। जोकि इस नगरी में अहर्निषे पूजा-पाठ होता है। व्यवसायी वर्ग इसमें बढ-चढकर हिस्सा लेते हैं। जितना वे व्यापार में अनैतिक हथकंडे अपनाते हैं उतना ही भक्ति-भाव दिखाते हैं। कलयुग में जितना पाप हो रहा उतनी ही धर्मांधता बढती जा रही।
अब यहीं देखिये। सरकार के जिस दस रुपये का सिक्का बाजार में प्रसार में है उसके हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में कई व्यवसायी विनिमय से कतराते हैं। सरकारी मुद्रा के विनिमय से इंकार करने पर सात साल जेल की सजा भुगतने का प्रावधान है। पर व्यवसायी कानून को ठेंगा दिखाते हैं। दरअसल यहां कुछ समय पहले नकली सिक्के प्रचलन में थे। सरकार ने सख्ती की तो दस रुपये के नकली सिक्के बाजार से गायब हो गये पर व्यवसायियों मेें उसका भूत अभी भी सवार है।
देश के अन्य बाजारों की तरह यहां भी चवन्नी और अठन्नी गायब हो गई। अब दुकानदार एक रुपये का सिक्का गायब करने पर तुले हुए हैं यहां। एक रुपये के बदले में वे टाॅफी देते हैं या अगर चार रुपये की कीमत है किसी चीज की तो सीधे पांच रुपये वसूलते हैं क्येांकि यह उनके लिये सुविधाजनक है जबकि ग्राहकों को एक रुपये की अतिरिक्त चपत पड़ती है। सिंहद्वार चौक पर हरेराम आश्रम के पास कपिल केमिस्ट दवा की दुकान है। एक बेंडेड की कीमत है दो रुपये। पर दो बेंडेड लेने पर ढाई रुपये कीमत बताकर फर्मासिस्ट पांच रुपये वसूलता है जबकि कुछ फर्लांग की दूरी पर स्थित अपोलो फार्मेसी अलग कंपनी द्वारा निर्मित बेंडेड की इतनी ही मात्रा पर अपने ब्रांड का ठप्पा लगा कर चार रुपये में बेचता है। अर्थशास्त्र का विद्यार्थी जानता है कि एक रुपये की बचत एक रुपये की कमाई हेाती है। वित्तमंत्री सीतारमण हर साल एक रुपये का बजट पेश करती हैं।
दुकानदार पहले तो कुछ चीजों के मनमाना दाम बताते हैं फिर मोलजोल पर उतर आते हैं। अरुण मसाला पीसाई केंद्र में सत्तु 180 रुपये किलो बिकता है पर उसके बगल में मनीष मसाला पीसाई केंद्र में 160 रुपये किलो में यह मिल सकता है।
कुछेक तो रतन टाटा जैसा व्यवसाय साम्राज्य बनाने का ख्वाब देखते हैं। ऐसा सपना देखना बुरा नहीं पर रतन टाटा देते थे लेते न थे। एक ही परिसर में योग संस्थान, निशानेबाजी सिखाने का केंद्र, आवासीय होटल, गुरुकुल कांगड़ी के दवाइयों की एजेंसी, होजीयरी कपड़ो का सेल, आयुर्वेद चिकित्सालय और गद्दे बनाने का वर्कशॉप खोलने का हश्र ये हुुआ कि व्यवसायी जनाब का संचालन पर से नियंत्रण ढिला पड़ा और इस दीपावली की पूर्व संध्या उनके परिसर में आग लग गयी और बहुत कुछ स्वाहा हो गया। यह दंभी और लालची व्यवसायी कम समय में सब कुछ हासिल कर लेना चाहता था।
आयुर्वेदिक दवाइयों का तिलस्म भी कुछ ऐसा है। हरिद्वार गुरुकुल कांगड़ी का मुख्यालय है। एक समय था जब गुरुकुल कांगड़ी की दवाइयों की विश्वसनीयता थी। यह फार्मेसी अब सभी प्रकार की दवाइयां नहीं बनाती। इस व्यवसाय में कई कंपनियां पदार्पण कर चुकी हैं। मसलन, वैद्यनाथ, डाबर, झंडु, द्युत पापेष्वर इत्यादि। इन कंपनियों में लाभ कमाने की होड़ है। ये अपने उत्पाद पर 10 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक मूल्य में छूट देती हैं। अब अगर कोई दवा कारगर है पर ज्यादा दाम पर बिक रही है तो कौन उसे खरीदेगा? सस्ते दाम पर वही दवा अन्य कंपनियां बेच रहीं।
गुरुकुल कांगड़ी सम विश्वविद्यालय परिसर स्थित आयुर्वेदिक महाविद्यालय एवं चिकित्सालय के पंचकर्म विभागाध्यक्ष डॉ उत्तम कुमार शर्मा कहते हैं, ‘अब दवाओं की गुणवता में कमी हुयी है। मरीजों पर सभी दवाएं असरदायक नहीं।’ यह दीगर है कि आयुर्वेदिक दवाएं अंग्रेजी दवाओं की बनिस्पत ज्यादा मंहगी हैं भले ही प्रतिकूल प्रतिक्रिया न करें। बाल झड़ना रोकने वाली बसंत कुसुमाकर रस की 10 टैबलेट की पत्ती छूट के साथ 680 रुपये में उपलब्ध है। इससे बड़ी पत्ती का दाम 2500 रुपये है। आम आदमी की पहुंच के बाहर है ये।
सड़क के किनारे पुलिया के पास बंगा कलेक्षन है जहां गर्म कपड़ो की बिक्री हो रही। सेल में सस्ते बिक रहे कपड़े यहां महंगे दामो पर बेचे जाते हैं। महिलाओं की पसंद के उडी स्वेटर नये स्टाॅक के 1000 रुपये में और पुराने स्टाॅक के 900 रुपये में उपलब्ध हैं। तुर्रा यह कि सिलाई उघड़े माल भी ग्राहकों की नजर चुरा कर बेचे जा रहे। इनके कैसमेमो भी नहीं दिये जाते। कपड़ों की गुणवता इसी से जांची जा सकती है कि वीआईपी की छूट के साथ 325 रुपये में मिली थर्मोकाॅट गंजी का एक धुलाई में ही रंग उतर गया। हांलाकि मैंक्रोमैन ब्रांड की थर्मोकाॅट गंजी 620 रुपये के महंगे दाम पर बिक रही। लक्स की सैंडो गंजी कनखल में 70 रुपये में और हर की पौड़ी की दुकानो में 80 से 100 रुपये में बेची जा रही। कहना न होगा कि बाजार का न तो कोई नियंत्रक है और न संचालक। सरकार के मार्केटिंग ऑफिसर क्या करते हैं?
हद तो कर दी इलेक्ट्रोनिक्स उपकरणो के एक विक्रेता ने। दीपक अपनी बिक्री की उचित रसीद नहीं देते। रसीद पर न तो दुकान का नाम है और न पता। सिर्फ उपकरण का नाम है और उसका मूल्य। सामान भी घटिया। चीन निर्मित जेब्रोनिक्स कंपनी का एक की-बोर्ड 250 रुपये में बिका पर यह डेस्कटाॅप के साथ कारगर नहीं है, कारगर है लैपटाॅप के साथ। माॅडल भी सन् 2022 ईस्वी का है।
जाहिर है विक्रेता ग्राहकों की आंखों में धूल झोंकते हैं। उपभोक्ता जागरुकता कम है। धोखा खाने पर प्रयाप्त साक्ष्य के अभाव में वे उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाने से महरुम हो जाते हैं। फिर समयाभाव और परेशानी के चलते वे अपने अधिकार नहीं जता पाते।
-ज्योतीन्द्र नाथ प्रसाद
निकट आइडिया टाॅवर, ज्योतिष पथ, अमरदीप नगर पश्चिमी रामाकृष्णा नगर, पटना-80002 -बिहार, मो -9431206977