ब्रह्मानंद ठाकुर
जमाना बड़ी तेजी से बदला है। यह बदलाव इन दिनों गांव से लेकर शहर की गलियों में घूमते आवारा कुत्तों में भी देखने को मिल रहा है। पहले ऐसा नहीं था। तब ऐसे कुत्तों के झुंड में धोखे से भी कभी कोई बाहरी कुत्ता आ जाता तो झुंड के कुत्ते उस पर ताबड़तोड़ हमला कर उसे भागने को मजबूर कर देते थे। इनकी आक्रामकता के सामने कोई अकेला कुत्ता टिक पाने की हिम्मत नहीं करता था। तभी शायद यह कहावत बनी होगी— अपना सीमा पर कुत्ता भी बरियार (ताकतवर) होता है। अब वैसी बात नहीं रही। ये कुत्ते अब बिना किसी भेदभाव के अन्य कुत्तों को अपने झुंड में शामिल करने लगे हैं। इनमें गजब की एकजुटता देखी जा रही है। आज मै इन आवारा कुत्तों की एकजुटता की कुछ बानगी प्रस्तुत कर रहा हूं।
पिछले दिनों मुजफ्फरपुर जिले के शर्फुद्दीनपुर में करीब डेढ़ दर्जन आवारा कुत्तों ने एक विधवा रीता देवी ( 55बर्ष) पर हमलाकर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया। महिला के शोर मचाने पर कुछ लोगों ने कुत्तों को भगाया। इलाज के लिए उस महिला को निकटतम अस्पताल ले जाया गया जहां प्राथमिक उपचार के बाद उसे एसकेएमसीएच रेफर कर दिया। वह महिला कचरी, पियजुआ और फोफी बना कर घूम- घूम कर बेचती थी। शाम का वक्त था। वह सामान बेंच कर घर लौट रही थी कि कुत्तों के झुंड ने उस पर हमला कर दिया। खबर है कि पिछले कुछ माह मे इस गांव में आवारा कुत्तों ने अबतक 107 लोगों को काटा है। शहरी इलाका भी इन आवारा कुत्तों के आतंक से मुक्त नहीं है। ये कुत्ते झुंड में घूमते हैं। ताजा घटना शहर के बेला इलाके की है। बेला निवासी पूर्व पार्षद पति राजाराम रमजान के अवसर पर जलापूर्ति समय से सुनिश्चित करने के लिए शनिवार की देर रात मिठनपुरा स्थित नगर निगम का पम्प हाउस चालू करवाने मोटरसाइकिल से जा रहे थे। रास्ते में कई कुत्तों ने उनकी मोटरसाइकिल पर एक साथ हमला कर दिया। वे गिरकर लहुलुहान हो गये। इन खबरो ने मुझे चिंतन करने के लिए मजबूर कर दिया है। वैसे मैं आवारा या पालतू कुत्तों द्वारा मनुष्य या अन्य जीवों पर हिंसक आक्रमण का विरोधी हूं। इसपर रोक का कारगर प्रयास होना ही चाहिए। कुत्ते की दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही घातक मानी गई है। मध्यकालीन कवि अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना (रहीम) ने कहा भी है, काटे-चाटे श्वान के दुहु भांति विपरीत। इस दोहे का शाब्दिक अर्थ ओछे लोगों से बैर या प्रीत न करना है। जाहिर है, कुत्ता निकृष्ट जीव है। यह उसका नकारात्मक पहलू है। वैसे हर घटना के नकारात्मक और सकारात्मक दो पहलू होते हैं। सकारात्मक पहलू के रूप में मैंने इस निकृष्ट जीव में भी एक खासियत महसूस किया है। वह खासियत उसकी एकजुटता है। सवाल है कि धरती का निकृष्टतम जीव, कुत्ता भी जब आपस में एकजुट हो सकता है तो मनुष्य क्यों नहीं? हम क्यों जाति, धर्म, सम्प्रदाय और क्षेत्रवाद की भावना के वशीभूत होकर आपस में बंटे हुए हैं? यही बंटना तो हमारे शोषण- उत्पीड़न का मुख्य कारण है। यह पूंजीवादी व्यवस्था शोषितों की एकता में बड़ी बाधा है। हमे वर्ण नहीं, वर्ग की बात सोंचना होगा। शोषित -पीडित आवाम को पूंजीवादी शोषण से मुक्ति के लिए वर्गचेतना से लैस होना बहुत जरूरी है। जिस दिन सभी शोषित -पीडित जाति, धर्म, सम्प्रदाय और क्षेत्रवाद की भावना त्याग कर आपस में एकजुट हो जाएंगे, उसी दिन शोषण -उत्पीडन के दिन लद जाएंगे। कुत्तों की एकजुटता कम से कम मुझे तो यही संदेश देती है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)