Browsing Category

इन दिनों

बादल- बूंदें और मंदिर शुल्क

राम राज्य मे बाबा का धाम "मंदिर" व्यवसायिक केंद्र के रूप मे तब्दील हो गया है। पहले दर्शन के लिए शुल्क की व्यवस्था बनायी गयी। अब देव दीपावली पर मंदिर परिसर में 'पितरों' के नाम से दीये जलाने‌ के लिए भी मंदिर शुल्क लगेगा।

लॉरेंस गैंग, राहुल गांधी और सलमान खान

बबूल रोपने से आम का पैदावार नहीं होता। देश में लॉरेंस गेंग की बहुत चर्चा है। उसने महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री की हत्या की है और उसने दावा किया है कि अभिनेता सलमान खान को भी जरूर मारेगा।

ज्ञान ही एक मात्र रास्ता

नब्बे के दशक में मैं पूरी गया था। गया था तो एक सम्मेलन में, लेकिन मंदिर की वास्तुकला देखने की इच्छा हुई। कोणार्क तब तक देख चुका था। हम चार मित्र थे जिसमें एक मुस्लिम मित्र भी थे। कोणार्क सूर्य मंदिर में तो कोई दिक्कत नहीं थी।

बंदर, दारू और बिच्छू का डंक

एक बंदर दारू पी ले और उसे बिच्छू डंक मार दे। इसके बाद जो उछल-कूद करता है, वैसी ही उछल-कूद मन हर वक्त करता रहता है। बंदर यों भी चंचल होता है। दारू उसे और चंचल बनाता है और उस पर बिच्छू का डंक।

पानी रे पानी, तेरा रंग कैसा

पानी प्राकृतिक है। जीने के लिए पानी चाहिए। हम चाहे मंगल पर जायें या चांद पर, वहां हम पानी की तलाश करते हैं। पानी होगा तो जीवन की संभावना है। पानी विचारों से परे है।

मरे चूहों और कुत्तों के मध्य बच्चे

भागलपुर का हवाई अड्डा हाथी का दांत है। कहने को हवाई अड्डा है, वहां हवाई जैसी कोई बात नहीं है। हर दो तीन वर्षों में उसकी चारदिवारी उठती गिरती है। अंदर एक लाउंज बना है और लंबी चौड़ी हवाई पट्टी है। लाउंज के पास कम से कम बीस उपेक्षित ट्रक लगे…

उनींदे- अनठाये दिनों के लिए कुछ शब्द

खैर, मेरे दिन यों ही खर्च हो रहे थे। भटके हुए लाचार दिन।‌ उन्हीं दिनों भागलपुर की सड़कों पर अलग से हंगामे थे। छात्र व्यवस्था बदलने के लिए उताहुल थे।

सफेद कास और खंजन नयन

डॉ योगेन्द्र चुनाव आ रहा है, जा रहा है। कोई जीत रहा है, कोई हार रहा है। कोई कह रहा है कि देश विकसित हुआ है। कोई कह रहा है कि, क़र्ज़ में डूबा घर कभी विकसित नहीं होता। हरेक का अपना रोना है और हरेक को अपना गाना। गाने पर याद आया। आज मैं सुबह…

निठल्ले के प्रवचन

एक आदमी को कितना हलाल करोगे? जब व्यक्ति मजदूरी कर रहा है, वह भी टैक्स भर रहा है। कहां गया था- वन नेशन, वन टैक्स। इस काम को सरकार कर नहीं सकी तो अब वन नेशन, वन इलेक्शन का नारा है। जबकि सरकार भी जानती है कि यह व्यवहारिक नहीं है

न गिद्ध रहे, न गिद्ध दृष्टि

नदियों की बर्बादी में किसका हाथ है? अगर हम कहते हैं कि नदियों को गंदा करना बंद करो, तो क्या बंद हो जायेगा? नदियाँ क्या इस व्यवस्था से अलग है? व्यवस्था इसी तरह की रहेगी, तो नदियों को कोई बचा सकता है?