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ठाकुर का कोना
नवम्बर क्रांति, जिसने सोवियत संघ के महिलाओं की दशा बदल दी
युगों-युगों से रूस की महिलाएं गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी हुई थीं। नवम्बर क्रांति के बाद सोवियत संघ में महिलाओं ने एक नये संसार में प्रवेश किया।
Chhath Puja : केलवा के पात पर उगलन सुरुज देव…
केला की उपलब्धता हर मौसम में बनी रहती है, वहीं इसके पत्ते का उपयोग जग जाहिर है। पर्व-त्योहारों में केले के फल के साथ-साथ पत्ते भी पूजा के काम में लाए जाते हैं।
एमएसपी कथा : केकरा से करी अरजिया
सरकार को क्रय एजेंसी पैक्स को पहले ही लक्ष्य के अनुरूप धान क्रय हेतु पर्याप्त पूंजी उपलब्ध कराकर किसानों को तत्काल भुगतान की व्यवस्था करनी होगी।
गोवर्धन पूजा- जाने कहां गये वे दिन
गांवों में कोई चहल पहल नहीं। बज्जिकांचल में गोवर्धन पूजा को सुकराती कहा जाता है। मुख्य रूप से यह किसानों- पशुपालकों का पर्व है। इस दिन बैल की विशेष रूप से पूजा होती है।
जब स्वामी सहजानंद सरस्वती ने गांधी जी की बोलती बंद कर दी थी
आजादी के बाद सहजानंद सरस्वती गांधी और जयप्रकाश की तरह सत्ता से अलग रहते हुए किसान-मजदूरों का राज स्थापित करने के लिए अपना स्वर मुखर करते रहे।
चावल के लिए बाजार पर निर्भर हो गये धान उत्पादक
किसान धान उपजाते हैं। धान से चावल तैयार होता है। किसानों के घरों में नहीं, बड़े-बड़े कारपोरेट घरानों द्वारा संचालित चावल मिलों में।
समाज का ऐसे हुआ वर्ग विभाजन
समाज में गरीब-अमीर अनादि काल से रहे है और रहेंगे। ऐसा अक्सर लोग कहते है। इसके लिए तर्क दिया जाता है कि जब हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं है तो फिर समाज में सभी बराबर कैसे हो सकते हैं? अमीर-गरीब तो भगवान ने बनाया है। उनका यह तर्क न तो…
सत्ता बदलने से व्यवस्था नहीं बदलती
आजादी के बाद से आज तक भारत मे बहुत सारे दल बनें, बिखरे, टूटे भी। कुछ दलों के नाम भी बदले। उसमें अनेक दलों का अब नामोनिशान तक नहीं रहा।दलों के नेता भी बदले, नीतियां वहीं रही। पूंजीवाद परस्त। परिणाम स्वरूप आम आदमी के हक में कुछ खास नहीं हुआ।
लुप्त हो गये गांव के हस्त शिल्प और कुटीर उद्योग
दो दिन पहले मेरे टोले में एक 8-10 साल का लड़का साईकिल के कैरियर पर बांस से बनी चार टोकरियां लादे, बेंचने आया था। मैंने टोकरी की जब कीमत पूछी तो उसने कहा, पापा ने सौ रूपये में बेंचने को कहा है। उसका मतलब था सौ रूपये में एक टोकरी।
आक्समिक नही है नेताओं का चारित्रिक अवमूल्यन
देश में आजादी आंदोलन चल रहा था। अपने नेता के आह्वान पर झुंड के झुंड युवक व युवतियां आंदोलन में शामिल हो रहे थे। अपने प्राणों की आहुति दे रहे थे। उनके दिलों में अपने नेताओं के प्रति बड़ा सम्मान भाव था। तब नेताओं में खुदगर्जी की कोई भावना…