Chhath Puja : केलवा के पात पर उगलन सुरुज देव…
केला हिन्दू संस्कृति और धार्मिक रीति-रिवाज से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ
ब्रह्मानंद ठाकुर
केला हमारी संस्कृति और धार्मिक रीति-रिवाज से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। जहां इसके फलों की उपलब्धता हर मौसम में बनी रहती है, वहीं इसके पत्ते का उपयोग जग जाहिर है। पर्व-त्योहारों (जैसे अभी छठ पूजा) में केले के फल का उपयोग तो होता ही है, इसके पत्ते भी काम में लाए जाते हैं। कच्चा केला सब्जी में भी धड़ल्ले से प्रयुक्त
होता है। मिथिलांचल और बज्जिकांचल में छठ जैसे महत्वपूर्ण पर्व के अवसर पर केला पर केन्द्रित कई लोक गीत गाए जाते हैं। ‘केलवा के पात पर उगलन सुरुज देव झांके-झूके।, केलवा जे फरल हई घउद से ताहि पर सुग्गा मेडराय, मारबउ रे सुगवा धनुष से, सुगा गिरे मुरझाए।।’ जैसे छठ गीतों की गूंज दिवाली समाप्त होते ही सुनाई देने लगती है।
बहुत कम लोगों को पता है कि केले के पत्ते का निर्यात कर अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए नई तकनीक अपनाना जरूरी है। डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के केला अनुसंधान केन्द्र, गोरौल के हेड एवं पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट आफ प्लांट पैथोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉक्टर) एसके सिंह बताते हैं कि केले के पत्ते भी आमदनी का अच्छा जरिया हो सकता है। जरूरत है उसे लंबे समय तक सुरक्षित रखने की तकनीक अपनाने की। वे बताते हैं कि तमिलनाडु एवं केरल में केले की फलों के साथ-साथ स्वस्थ केला के पत्तों के लिए भी की जाती है। उन प्रदेशों में लोग खाना केले के पत्तों पर ही खाते है। यह शुद्धता एवं पवित्रता का द्योतक है। केला के पत्तों पर खाना खाने से खुशी का अनुभव होता है क्यों की पत्तों से वही रसायन निकलता है जो ग्रीन -टी पीने से मिलता है। केला के पत्ते आजकल खाड़ी के देशों में खूब निर्यात हो रहे है। ताजा केले के पत्ते आजकल बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं, खासकर छुट्टियों में जब हम घर से बाहर जाते है पार्टी के लिए। ताजे केले के पत्तों की बढ़ती मांग के कारण, खेतों से न केवल केले के फलों की आपूर्ति होती है बल्कि केले के पत्ते भी बहुत अधिक कीमतों पर बेचे जाते हैं।
ताज़े केले के पत्ते उन लोगों की रसोई में एक अनिवार्य सामग्री हैं जो देहाती व्यंजन और केक पसंद करते हैं। इनके कई उपयोग हैं जैसे, बुखार को प्रभावी ढंग से कम करने में मदद करता है। केले के ताजे पत्ते घावों को जल्दी भरने में मदद करते हैं। लोग केक लपेटने के लिए इस्तेमाल करते है और साथ ही चिपचिपा चावल, सामान पैक करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। वैसे तो इसके कई उपयोग हैं, लेकिन केले के पत्ते आसानी से फट जाते हैं, खासकर हवा के मौसम में। जब छुट्टियों में उपयोग की मांग बढ़ जाती है, तो केले के पत्तों को अधिक समय तक संरक्षित करने का तरीका भी लोगों के लिए बहुत रुचिकर एवं जानना अति आवश्यक है।
भंडारण से पहले ताजा केले के पत्तों का प्रारंभिक प्रसंस्करण कम तापमान पर करते है और पत्तियों की सतह को साफ करते है। बाद में केले के पत्तों को पानी में भिगो देते है। केले के पत्तों को सिंक में भी डाल सकते हैं और फिर इसे तेजी से धोने के लिए बहते पानी को चालू करते हैं। भिगोने के बाद, धोने से बची हुई गंदगी को हटाने के लिए पत्तियों की सतह को पोंछने के लिए एक साफ कपड़े का उपयोग करते है। ध्यान रहे कि केले के पत्ते बहुत कोमल होते है, धोते समय ताजे पत्ते फटने नहीं चाहिए। धोने के बाद, ताजे केले के पत्तों को 2-3 मिनट के लिए उबलते पानी में उबाला जाता है, फिर उन्हें बाहर निकालकर ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है, इसे ब्लीचिंग करना कहते है। यह ब्लीचिंग न केवल केले के पत्तों को उनकी कठोरता बनाए रखने में मदद करता है, बल्कि सतह पर सूक्ष्मजीवों को मारने में भी मदद करता है। संग्रहीत केले के पत्ते अपने प्राकृतिक हरे रंग को लंबे समय तक बनाए रखते हैं।
केले के पत्तों को संरक्षित करने से वे लंबे समय तक तरोताजा रहते हैं। केले के पत्तों को सावधानी से मोड़ा जाता है और फ्रिज में प्लास्टिक की थैली में रखा जाता है। ढकने के लिए प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग करने से ठंडी हवा के संपर्क को सीमित करने में मदद मिलती है। आप केले के ताजे पत्तों को अधिक समय तक रखना चाहते हैं, तो आप उन्हें फ्रीजर में रख सकते हैं। इससे केले के पत्तों को उनकी मूल स्थिति बनाए रखने में मदद मिलेगी। वे कहते हैं कि केले के पत्तों को एमएपी फ्लिम्स के साथ लपेटते हैं और पत्तियों को 5 डिग्री सेंटीग्रेड के नियंत्रित तापमान में रखते हैं तो पत्तियों को उसे और 10 दिनों के लिए ताजा रक्खा जा सकता है। इससे निर्यात की संभावना बढ़ जाएगी और उच्च आय का सृजन होगा। केला के पत्तों से बने थाली, कटोरी एवं गिलास आजकल अच्छी सोसाइटी में चल रहे है, यह प्लास्टिक का सर्वोत्तम विकल्प है, थोड़ा महंगा मिलता है। पर्यावरण के अनुकूल है। यह बहुत जल्दी सड़-गल कर मिट्टी में मिल जाता है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)