प्रगति यात्रा की अधोगति

प्रगति से ज्यादा, प्रगति का प्रचार

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डॉ योगेन्द्र
सुबह टहलने निकला तो सैकड़ों पुलिसकर्मी इधर उधर हो रहे थे। जहाँ टहलने जाता था। उस गेट पर पुलिसकर्मी खड़े थे। उन्होंने अंदर जाने से मना किया और प्यार से ही बोला- कल से आइएगा। आज अंदर मत जाइए। मैं सड़क पर ही टहलने लगा। टहलते हुए मन में बहुत सी बातें आ जा रही थीं। एक मुख्यमंत्री के आने के बाद सड़क पर झाड़ू लगाया जा रहा है। पानी छीटा जा रहा है। कई दिनों से पुलिस परेशान है। अपने अपने नाम के पोस्टर -बैनर अनेक छोटे बड़े नेता लगा रहे हैं। मुख्यमंत्री की प्रगति यात्रा में बैनर पोस्टर का बहुत बड़ा योगदान है। अगर ये नहीं रहते तो पता ही नहीं चलता कि बिहार ने कितनी प्रगति की है। प्रगति से ज्यादा जरूरी है प्रगति का प्रचार। मैं तो देखता हूँ कि अंग का यह इलाका मुख्यमंत्री जी की कृपा से अधोगति के रास्ते में है। स्मार्ट सिटी के नाम पर थोड़ा बहुत शहर का थोबड़ा चमकाने की कोशिश जरूर हुई है, लेकिन बुनियादी स्ट्रक्चर में ज्यादा अंतर नहीं आया। जब से भागलपुर में हूँ, तब से हवाई जहाज उड़ाने के सपने दिखाए गए। सभी दल के नेताओं ने यह शुभ काम किया। लेकिन आज तक यह सपना धरती पर नहीं उतरा। अब यह सपना दो स्थल पर उड़ रहा है- एक- गोराडीह में और दूसरा सुलतानगंज में। अभी तक जगह का फैसला नहीं हुआ। तो सोचिए कि कितने वर्ष और लगेंगे?
प्रधानमंत्री ने लगभग नौ वर्ष पूर्व यह घोषणा की कि विक्रमशिला महाविहार के पास एक केंद्रीय विश्वविद्यालय खोला जाएगा। उसकी स्वीकृति भी हुई, लेकिन आज तक वह स्थापित नहीं हो सका। लालू प्रसाद जब रेल मंत्री थे तो भागलपुर में डीआरएम ऑफ़िस खोलने की स्वीकृति हुई। लेकिन डीआरएम ऑफ़िस बनने के बजाय उसकी स्वीकृति ही खत्म कर दी गयी। यहाँ के आयुर्वेद कॉलेज की बुनियाद प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने रखी थी। आज वह भी दम तोड़ रहा है। मुख्यमंत्री को प्रगति यात्रा सिर्फ नालंदा जिले में करनी चाहिए। बिहार की प्रगति का आधा पैसा तो वहाँ लग रहा है। अंग की संस्कृति उसकी भाषा में निहित है। अब अंग से यह भाषा भी छीन रहे हैं और कह रहे हैं कि अंग मिथिलांचल है। महात्मा बुद्ध के समय सोलह जनपदों में पहला जनपद अंग है। अब इस जनपद का नाम भी मिटाने पर तुले हैं। मुख्यमंत्री ने अंगिका अकादमी बनायी जिसे वहाँ का क्लर्क चला रहा है। उसके अध्यक्ष की नियुक्ति हो ही नहीं रही है। लगता है कि कोई आदमी अध्यक्ष बनने के काबिल ही नहीं है। यह है सरकारी उपेक्षा और मुख्यमंत्री जी यहाँ पूरे तामझाम के साथ प्रगति यात्रा के गीत गा रहे हैं। बीस वर्षों से कुर्सी पर बैठे हैं। अब उनकी स्मृति भी साथ छोड़ने लगी है। मगर कुर्सी मोह छूटे तो कैसे? हद तो है स्थानीय नेताओं की जो मुख्यमंत्री को समस्या नहीं बताते और न उनके सामने खड़े होते हैं। भागलपुर ही नहीं पूरे अंग क्षेत्र उपेक्षा के शिकार है। यहाँ नये कल कारखाने क्या खुलेंगे, जो सिल्क उद्योग था, वह भी मर चुका है। भागलपुर को रेशम नगरी कहा जाता है, मगर यहाँ रेशम का अता पता नहीं है। मुख्यमंत्री की यह प्रगति यात्रा नहीं है। प्रगति बैनरों में है।

 

 

Chief Minister's Pragati Yatra
डॉ योगेन्द्र
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं
जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)

 

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