डॉ योगेन्द्र
पानी प्राकृतिक है। जीने के लिए पानी चाहिए। हम चाहे मंगल पर जायें या चांद पर, वहां हम पानी की तलाश करते हैं। पानी होगा तो जीवन की संभावना है। पानी विचारों से परे है। हम वामपंथी हों, समाजवादी हों या दक्षिणपंथी, पानी सभी को चाहिए। पाकिस्तान इस्लामिक देश है, उसे भी चाहिए और भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश को भी चाहिए। गाजा या इजरायल में मरते जीते सभी लोगों को पानी चाहिए। क्रोध से उन्मत्त शख्स को भी और शांत चित्त स्थिर व्यक्ति को भी। दुनिया में जितने तरह के जीव जन्तु या पेड़ पौधे हैं, सभी को पानी चाहिए। और फिर पानी को हमने निर्मित नहीं किया है, न कारखानों में बनाया है, न किसी बादशाह के खजाने से निकाला है। पानी पर कोई दावा नहीं कर सकता। लेकिन आज प्रकृति प्रदत्त पानी को कैद करने की होड़ मची है। कोई गंगाजल को बोतल में बंद कर रहा है तो कोई कैम्टी झरने को। प्रकृति का यह अक्षय स्रोत पर ही आज खतरा उत्पन्न हो गया है।
कल एक संवाद गोष्ठी में शामिल हुआ। संवाद गोष्ठी का नाम था- धरती-नदी-पानी संवाद। धरती बची रहे, नदियां अविरल बहती रहें और पानी कायम रहे, कौन नहीं चाहेगा? लेकिन इसकी रक्षा भी अब कौन करेगा? मुझे भी बोलने के लिए कहा गया। अब बोलने की इच्छा नहीं होती। लगता है कि मैं खुद दोषी हूं। नदियों की हत्या करने में, धरती को नष्ट करने में और पानी के अक्षय स्रोत को बर्बाद करने में। गांधी के पास सत्ता नहीं थी। न वे प्रधानमंत्री रहे, न राष्ट्रपति, तब भी उनके साथ लोग रहे। वजह थी कि उनके कहने और करने में भेद नहीं था। लड़के को गुड़ खाने से तब तक मना नहीं किया, जब तक उन्होंने गुड़ खाना छोड़ा नहीं। लेकिन हम सब दो राहे पर हैं। जो कहते हैं, वे करते नहीं हैं। हम गुड़ भी भकोस रहे हैं और दूसरे को मना भी कर रहे हैं। हम तो उसी जीवन व्यवस्था के अंग हैं, जो धरती, नदी और पानी को तंग तबाह कर रही है। दुनिया जिस रफ्तार से दौड़ रही है और जिस तरह से दौड़ रही है, इसका अनिवार्य परिणाम है यह गहराता संकट।
हम दुहरा जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं। बोली और करनी में संबंध विच्छेद हो गया है। इसलिए बोलने से हिचकने लगा हूं। मेरी बोली का असर क्यों होगा, जब हम भी वही कर रहे हैं जिसके खिलाफ बोलते हैं। इधर रांची हाईकोर्ट ने वहां की सरकार से पूछा है कि रांची में 71 तालाब थे। अब तीन चार बचे हैं। शेष लापता तालाब का पता लगाकर बताइए कि वे कहां गए? ये तालाब आदमी के लोभ लालच के शिकार हो गए। इतना तो तय है। गोष्ठी में एक आदमी कह रहा था कि पहले मेरे गांव में 15 फीट पर पानी था। फिर तीस फीट पर पानी मिलने लगा। अभी 125 फीट पर पानी मिल रहा है। अगर बिजली नहीं रहती है तो बोरिंग से पानी नहीं मिलता और पानी पीना मुहाल हो जाता है। गांव देहात की छोटी-छोटी नदियों को लोगों ने बर्बाद कर दिया है। नदियों से बालू इतना निकाल लिया गया कि नदी-नदी नहीं लगती। जो भी बरसाती पानी आता है तो पता ही नहीं चलता। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा है कि धरती का ताप बढ़ गया है, बारिश अनियमित हुई है और ठंड भी अपना भयंकर रूप दिखा रहा है। तब भी हम रूक नहीं रहे। सभी का दोहन कर कुछ लोगों की चमक हमें पीड़ित और प्रभावित नहीं करती कि नयी दुनिया के लिए कुछ सोच सकें।