किसानों को शोषण से मुक्ति के लिए वर्ग चेतना से लैस होना होगा

किसानों को शोषक राजसत्ता के खात्में तक संघर्ष जारी रखना होगा

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ब्रह्मानंद ठाकुर
हमारे देश में आजादी के बाद से आज तक किसानों की दशा लगातार बद से बद्तर होती जा रही है। खेती-किसानी के अलाभकर हो जाने से लाखों की संख्या में किसान खेती से विस्थापित होकर जीविका के लिए महानगरों की ओर पलायन कर चुके हैं। यह सिलसिला लगातार जारी है। दूसरी तरफ पूंजीपतियों का मुनाफा आसमान की बुलंदी छू रहा है।
किसानों की आवाज संगीनों के बल पर दबाई जा रही है। इस स्थिति की ओर अगाह करते हुए काफी पहले स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसानों के अविराम संघर्ष जारी रखने का आह्वान किया था। उनका मानना था कि किसानों का यह संघर्ष शोषक राजसत्ता के खात्में तक जारी रखना होगा। वे किसानों के इस आंदोलन में देश की नारी शक्ति को भी शामिल करने के पक्षधर थे। वे किसान आंदोलन और जन आंदोलन की सबसे बड़ी बाधा भाग्य और भगवान को मानते थे। उन्होंने विभिन्न कर्मकांडों, धार्मिक आस्था और अंधविश्वास को किसानों के शोषण से मुक्ति की राह में बड़ी बाधा मानते हुए सबसे पहले इन प्रवृत्तियों से मुक्त होने की आवश्यकता बताई थी।
उनका कहना था कि यदि हम किसानों, मजदूरों और शोषितों के हाथ में शासन व्यवस्था लाना चाहते हैं तो इसके लिए क्रांति जरूरी है। क्रांति से उनका तात्पर्य व्यवस्था परिवर्तन से था। शोषितों का राज्य क्रांति के बिना सम्भव नहीं। और, क्रांति के लिए राजनीतिक शिक्षण जरूरी है। किसान- मजदुरों को राजनीतिक रूप से सचेत करने की जरूरत है ताकि व्यवस्था परिवर्तन हेतु आंदोलन के दौरान वे अपने वर्ग दुश्मन की पहचान कर सकें। स्वामी जी ने किसानों की दयनीय दशा को काफी निकट से देखा था। वे खूब अच्छी तरह समझ रहे थे कि किसानों की गाढ़ी कमाई का फल किस तरह से शोषक जमींदार, साहुकार, बनिए, महाजन, पंडा-पुरोहित, साधू, फकीर, ओझा, गुणी, यहां तक कि पशु-पक्षी, तक गटक जाते हैं।
आजादी आंदोलन के दौरान हजारीबाग जेल में रहते हुए उन्होंने एक किताब लिखी थी…. किसान क्या करें? इस किताब में उन्होंने बड़ी सरलता से उन स्थितियों को दर्शाते हुए किसानों से सवाल किया है कि क्या किसानों ने कभी सोचा है कि वे जो उत्पादन करते हैं, उस पर पहला अधिकार उनके बाल-बच्चे और परिवार का है? उन्हें इस स्थिति से हर हाल में मुक्त होना पड़ेगा। आज पूरी व्यवस्था किसानों एवं उसके परिवार को भूखे-नंगे रखने को कृतसंकल्पित है ताकि वे निरुपाय होकर शोषक वर्ग के ऐशो आराम का साधन जुटाने में खुद को उत्सर्ग कर दे। किसानों को इस स्थिति से मुक्त होना होगा। आज स्वामी सहजानंद सरस्वती नहीं है किंतु किसानों के हित में उनके द्वारा उठाए गये सवाल आज भी यथावत हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि किसानों के शोषण का तरीका बदल चुका है। आज पूंजीवादी शोषण मूलक राजसत्ता के मैनेजर विभिन्न राजनीतिक दल जिस तरह से किसानों की समस्याओं पर घड़ियाली आंसू बहाते हुए किसान मुक्ति आंदोलन को लक्ष्य से भटकाने का काम कर रहे हैं, उसे समझने के लिए किसानों को वर्ग चेतना से लैस होना होगा। यह काम सही राजनीतिक शिक्षण के बिना सम्भव नहीं है।

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