हरियाणा का सियासी महाभारत

भाजपा फिर से तीसरी बार का लक्ष्य साधने सियासी समर में

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बाबा विजयेन्द्र

हरियाणा आज अपने भविष्य निर्माताओं का चुनाव कर रहा है। चुनाव में होश और विवेक की अपेक्षा की जाती है। अक्सर इसके विपरीत ही जनता का व्यवहार सामने आता है। अमूमन जनता बदलाव के पक्ष में खड़ी होती है। पब्लिक परिवर्तन ही पसंद करती है। रिपीट का मतलब केवल समीकरण ही नहीं होता बल्कि सरकार से संतुष्टि भी होती है। वादाखिलाफी को एक हद तक ही दबाया जा सकता है या भुलाया जा सकता है। नये नैरेटिवस की भी अपनी सीमा होती है।

भाजपा यहां फिर तीसरी बार का लक्ष्य साधने सियासी समर में है। खतरे बहुत है भाजपा के पास। एक तो एंटी इंकम्बेंसी है दूसरा भाजपा का कमजोर नेतृत्व। भाजपा के भीतर नेतृत्व परिवर्तन भी हुआ। खट्टर हटाए गए। केंद्र की राजनीति में जगह मिली और मंत्री भी बन गए हैं। सैनी के हाथ में कमान मिला पर सैनी कोई कमाल करते नजर नहीं आ रहे हैं। किसान आंदोलन में मनोहर लाल ने जो कमाल किया उसे हरियाणा और पंजाब के किसान अभी तक भूले नहीं हैं। इन्हें हटाना और फिर सम्मानित करना, यह भी हरियाणा के आम आवाम को अच्छा नहीं लगा? खट्टर को सजा के बदले मजा मिल गया। बात मजा चखाने की आ गयी है। जनता का ऐसा ही मन बनता दिख रहा है।

इसे किसानों ने चिढ़ाने वाला मामला ही समझा। भाजपा को गैर जाट के कंधे पर अपनी जीत का भरोसा है। यह भरोसा टूटेगा या मजबूत बना रहेगा, हमें इसके लिए दो दिन का इंतज़ार करना पड़ेगा।

कांग्रेस को भी अपनी जीत का भरोसा है। पर भीतरघात और गुटबंदी इस जीत को प्रभावित कर सकती है। हरियाणा में सभी के अपने-अपने कांग्रेस हैं। शैलजा का कोप-भवन में जाना कांग्रेस के लिए खतरनाक होता? यद्यपि कांग्रेस नेतृत्व ने इन्हें भरसक सम्हालने की कोशिश की। कोशिश कितनी कारगर हुई यह तो चुनाव परिणाम से ही पता चलेगा।

हरियाणा राजनीति की पुरानी लालिमा ख़त्म हो गयी है। सारे लाल दिवंगत हों चुके हैं। यथा देवीलाल, भजनलाल, वंशीलाल अब नहीं हैं पर इनकी साया सियासत के साथ-साथ चल रही है। इनकी दूसरी तीसरी पीढ़ी मैदान में है। परिवार और  गंगेस्टर से भी हरियाणा पॉलिटिक्स मुक्त नहीं हुई है। भाजपा को दो बार मौका मिला। यह मौका था हरियाणा को इस काली साया से मुक्त करने का। पर नहीं हुआ।
जम्मू कश्मीर और हरियाणा चुनाव के परिणाम अगर भाजपा के अनुकूल होते हैं तो लोकसभा चुनाव के ज़ख्म के लिए एक मलहम साबित होगा। अन्यथा यह अवधारणा बनेगी कि मोदी-मैजिक के दिन लद गए। यह मोदी के उतार की कहानी को मजबूत करेगा। बाहर और भीतर दोनों तरफ से मोदी को चुनौती मिलने लग जायेगी। इसका प्रभाव महाराष्ट्र, झारखण्ड और आगामी बिहार की राजनीति पर भी पड़ेगा। मोदी के अवकाश लेने के समय पर भी बात शुरू हो जाएगी। भाजपा अभी से ही नये नेतृत्व को साफ सुथरा करने में लग गयी है। गडकरी फिर बीच बहस में आ जाएंगे। फिलहाल यहां शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न हो, इसकी अपेक्षा है।

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