हाईब्रिड मक्का बीज का मूल्य एक हजार रुपये किलो!
मक्के की खेती बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उत्पादित बीज पर निर्भर
ब्रह्मानंद ठाकुर
अभी शीतकालीन मक्के की रोपाई का सीजन चल रहा है। खेतों की तैयारी कर किसान बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उत्पादित विभिन्न ब्रांड के मक्का बीज तलाश रहे हैं। उनकी प्राथमिकता अधिक उपज क्षमता वाले बीज की है। इनकी पहली पसंद पायोनियर कम्पनी का प्रभेद 3522 है। बाजार में इसकी कीमत एक हजार रुपये प्रति किलो है। यह सुन किसानों के पसीने छूट रहे हैं। कृषि में बीज का महत्व सबसे अधिक है। बीज की गुणवत्ता से ही उर्वरक की मात्रा और सिंचाई की जरूरत निर्धारित होती है। हमारे देश के किसान पहले परम्परागत बीजों से खेती करते थे। जिसके लिए मामूली खाद और सिंचाई की जरूरत होती थी। विभिन्न फसलों के बीजों के लिए किसान आत्मनिर्भर थे। विशेष परिस्थिति में वे बीज एवं अन्य कृषि उपादानो की व्यवस्था पास-पड़ोस के किसानों से कर लेते थे। बीज संरक्षण की उनकी अपनी तकनीक थी। इस परम्परागत खेती से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को मुनाफा कमाने की गुंजाइश नहीं थी। हरित क्रांति ने परम्परागत बीजों की जगह हाईब्रिड बीज से खेती को प्रोत्साहित किया। ऐसे बीजों से प्रति एकड उपज में आशातीत वृद्धि होने के कारण किसान हाईब्रिड बीजों की तरफ बड़ी तेजी से आकर्षित हुए। देखते-देखते पूरी कृषि व्यवस्था हाईब्रिड बीज पर आधारित हो गई।
सबसे पहले इसकी शुरुआत 1965-70 के आसपास मक्के की फसल से हुई। इससे पहले मक्के की खेती सिर्फ खरीफ मौसम में की जाती थी। अब साल में मक्के की तीन-तीन फसल उगाई जाने लगी है। शीतकालीन मक्के की उपज सर्वाधिक होने के कारण किसानों का इस सीजन में मक्के की खेती के प्रति रुझान काफी बढ़ा है। इसे देखते हुए बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने मक्का बीज उत्पादन के क्षेत्र में अपना पांव जमा लिया। आज मक्के की खेती डीकाल्व, मानसेंटो, वायोसीड, पायोनियर, राशि आदि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उत्पादित बीज पर निर्भर है। इन कम्पनियों का मक्का बीज 1800 से 4000 रुपये (प्रति 4किलो के पेकेट) की दर से स्थानीय बाजार में बेचा जा रहा है। ये कम्पनियां मक्का के एक-एक दाने का मूल्य वसूल रहीं हैं। साढ़े चार किलो के पैकेट में करीब 16 हजार दाने होते हैं। कम्पनियां एक एकड़ में 32 हजार पौधे लगाने की अनुशंसा करती है। जब कोई खास प्रभेद किसानों में लोकप्रिय हो जाता है तब बाजार में इसका कृत्रिम अभाव बताकर मनमाना मूल्य वसूला जाता है। इसपर न राज्य सरकार का नियंत्रण है, न केन्द्र सरकार का। विडम्बना तो यह है कि हमारे देश के कृषि विश्वविद्यालयों ने अभी तक इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के टक्कर का मक्का बीज का ईजाद ही नहीं किया है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)