बाबा विजयेन्द्र
बिहार आज एक नयी पार्टी की स्थापना का गवाह बना। यहां पार्टियां बनती बिगड़ती रही हैं। नेता भी दलबदल करते रहे हैं। कुछ नेताओं से हालचाल में यह पूछा जाता है कि आजकल किस पार्टी में हैं? आये गए नेताओं की स्थिति ऐसी रहती है कि पुराने दल के चुनाव चिन्ह ही नये दल में दुहराये चले जाते हैं। यह जिह्वा की फिसलन नहीं बल्कि मजबूरी की तरह सामने आती है। बिहार के परिवर्तन की कुछ ऐसी ही तस्वीरें सामने आती रही हैं। लेकिन पटना का वेटनरी कालेज का ग्राउंड एक नयी राजनीतिक संस्कृति निर्माण का साक्षी बना।
पिछले दो वर्षों से प्रशांत किशोर गाँधी को प्रेरणास्रोत बनाते हुए पदयात्रा पर निकल पड़े। बेहतर बिहार का सपना लिए गांव-गांव की खाक छानते रहे। लोगों से निरंतर संवाद जारी रखा। दो वर्षो की पदयात्रा में दो जून की रोटी के प्रश्न उत्तरित होते नजर आये। फिर आज की तिथि मुक़्क़मल की गयी कि जन सुराज अभियान अब एक पार्टी के रूप में सामने आएगा। यह भी राजनीतिक इतिहास की अनोखी घटना घटी कि बिहार के एक करोड़ लोगों ने पार्टी गठित करने की न केवल सहमति दी बल्कि सदस्यता भी ग्रहण की। अपार भीड़ अपार बहुमत बनेगी या नहीं यह तो दूर की बात है। लेकिन जो त्वरा और तेवर देखने को मिला, जन सुराज को दीर्घायु बनाएगा। बात जो यहां से उठी है वह दूर तक जाने वाली है।
प्रशांत किशोर का उपनाम जो ‘पांडेय’ हैं इस प्रश्न का उत्तर भी जिस तरीके से दिया उसकी सराहना की जानी चाहिए। वह उत्तर है मनोज भारती एक मधुवनी का दलित। नवमी पास के डिबेट का सार है मनोज भारती जो उच्चतम तकनीकि शिक्षा प्राप्त जन सुराज के कार्यकर्ता हैं। कहीं कोई लापरवाह फैसला नजर नहीं आया। इतनी भीड़, पर पुलिस नदारद। इतनी आत्मानुशासित भीड़ पहले किसी राजनीतिक दल के कार्यक्रम में नहीं देखी गयी।
प्रशांत वक्ता नहीं हैं। इस कार्यक्रम में प्रशांत सूत्रधार ही साबित हुए। जुमले की कोई जगह नहीं थी इनके भाषण में। बिलकुल जार्ज शैली में तथ्यपरक सवाल और उसके तथ्यपूर्ण उत्तर! पहले कुछ भी बोले हों, पर स्थापना भाषण में इन्होने सभी दलों के काम ही गिनाये। पीके ने कहा कि जिस लिए वोट दिया वह आपको मिला। पर आपने अभी तक रोटी रोजगार और शिक्षा के लिए वोट नहीं दिया इसलिए अबतक वह अधिकार नहीं मिला। इस बार केवल इस सवाल पर ही वोट करना है। शराब नीति की प्रशांत ने धज्जियाँ उड़ा दी। प्रशांत ने कहा कि शराब बंदी को ख़त्म करना उनकी पहली प्राथमिकता है।
पैसा कहाँ से आएगा और उस पैसे से क्या करना है सभी बिंदुओं पर खुल कर उन्होंने बात की। खाने की खेती नहीं अब खेती बिहार की कमाने वाली होगी। बैंको की लूट पर भी लगाम लगेगा। बिहार का पैसा बिहार पर खर्च होगा। बिहार का बैंको में जमाधन बिहार के विकास का संसाधन बनेगा। पैसा बिहार का और विकास गुजरात का, यह नहीं चलेगा। नहीं चाहिए बिहार को कोई पैकेज। बिहार को लूटना केवल बंद कर दे। बिहार अब याचक नहीं निवेदक की भूमिका में देश के सामने होगा। दुनिया का सबसे बड़ा शिक्षा केंद्र बनेगा बिहार, इसका प्रशांत ने आश्वासन दिया। उन्होने कहा कि बोलने के लिए वे नहीं बोल रहे हैं बल्कि बहुत कुछ करना है इसलिए बोल रहे हैं। प्रशांत के भाषण से विपक्ष के कान ही नहीं खड़े हुए बल्कि खटिया भी खड़ी हो गयी। बिहार के पोस्टर वार से हम अंदाजा लगा सकते हैं कि जन सुराज का तेवर कितना तल्ख़ है। जो अपने बहू का नहीं हुआ वह बिहार का क्या होगा? लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप के बहाने पूरे परिवार पर निशाना साधा गया है। लालू की बहू का फोटो भी पोस्टर पर चिपका नजर आया। संकेत यही है कि बिहार में सियासी घमासान होना तय है। बाहुबलियों की दुकानदारी भी बंद होने वाली है। बस हमें इंतज़ार करना है कि आगे-आगे क्या होता है? जो भी हो प्रशांत बिहार में एक फेक्टर बन चुके हैं। इन्हें इग्नोर करना अब किसी के लिए आसान नहीं होगा।