डॉ योगेन्द्र
बबूल रोपने से आम का पैदावार नहीं होता। देश में लॉरेंस गेंग की बहुत चर्चा है। उसने महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री की हत्या की है और उसने दावा किया है कि अभिनेता सलमान खान को भी जरूर मारेगा। फेसबुक पर मैंने उसके समर्थन में भी पोस्ट देखा है। रायबरेली सांसद, राहुल गांधी को भी लॉरेंस विश्नोई के नाम पर सोशल मीडिया में मारने की धमकी दी गई है। यह धमकी बुद्धादित्य मोहंती के नाम के बने अकाउंट पर दी गई है। रोज़ कोई न कोई फ़्लाइट की इमरजेंसी लैंडिंग हो रही है, ट्रेन रोक कर जाँच की जा रही है। राहुल गांधी के जीवन पर ख़तरा, देश के प्रतिपक्ष नेता का ख़तरा है। आखिर देश का यह आतंकी माहौल क्यों बन रहा है और एक अपराधी गैंग को इतनी हिम्मत कैसे और कहां से हो रही है कि वह खुलेआम धमकी दे रहा है और प्रशासन, अदालत और राजनेता चुप हैं। यह सन्नाटा क्यों है भाई? क्या हम बचे खुचे लोकतंत्र को भी दफनाने की तैयारी कर रहे हैं?
दरअसल जैसी सत्ता चल रही है, उसमें गैंग का पनपना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मणिपुर में जो कुछ हुआ और हो रहा है, उसमें क्षुद्र राजनीति के लिए बड़े बड़ों का चुप रहना सामान्य बात नहीं है। सत्ता आती जाती रहती है, लेकिन इतिहास में उसी सत्ता का नाम रह जाता है, जो आदमी की रक्षा में खड़ा रहती है। उत्तर प्रदेश में तथाकथित एक योगी ने बुल्डोजर चलवाया। बहुत से लोग खुश हुए। उन्होंने जरा भी नहीं सोचा कि यह सत्ता की नाकामी है। अपराधियों को उसके अपराध के लिए दंड मिले और समयबद्ध मिले। इसके लिए जिम्मेदार कौन है? हम किसी को सत्ता सौंपते हैं, इस विश्वास के साथ कि वह न्याय करेगा और संविधान के दायरे में काम करेगा। जब घर के मुखिया को हम डिरेल होते देखते हैं, तो उनके बच्चों से बहुत उम्मीद नहीं करते। मुखिया आदर्श होता है। वह अगर गलत रास्ते पर चलेगा, तो दूसरे से सही रास्ते की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए। देश में वही हो रहा है। हम हिंसा का खुलेआम समर्थन के लिए तैयार हैं तो आपके दरवाजे पर गंडासे मिलेंगे ही।
देश को आजादी मिली। साथ ही ऐसा हिंसक मंजर देखने को मिला कि आज तक हम उससे उबर नहीं पाये। महात्मा गांधी के हत्यारे का भी सिरफिरे समर्थन करते हैं। महात्मा गांधी से टक्कर लेने की हिम्मत है, तो उनके विचारों को परास्त करो। महात्मा गांधी के बाद इंदिरा गांधी, राजीव गांधी की हत्या हुई। इनके साथ अन्य लोगों की भी आतंकी कार्रवाई में हत्याएं हुईं। कश्मीर में ऐसी आतंकी कार्रवाई होती ही रहती है। किसी सभ्य समाज में अगर हिंसक वारदातों का समर्थन होता है तो वह समाज सभ्य नहीं रह जाता। लॉरेंस गैंग हो या दाउद गैंग हो, इसका समर्थन एक आत्मघाती कदम है। सत्ता जो आम लोगों पर लाठियां भांजने में देर नहीं करती, गैंग पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही? इतने अधिकारी, जासूसी संस्थाएं, पुलिस, फौज – आखिर किस दिन के लिए है? हम दूसरे देशों की आतंकी कार्रवाई को खात्मे का दंभ भरते हैं, लेकिन देश के अंदर क्या हो रहा है? जेल के अंदर से फरमान जारी किये जा रहे हैं। जेल अधिकारियों को क्या केवल निरपराधों पर डंडे भांजने के लिए वेतन दिए जाते हैं? और सबसे बुरी और गंदी हालत राजनेताओं की है, जो गुंडों को विधायक और सांसद का टिकट देते हैं। जब ऐसे लोग सांसद और विधायक बनते हैं तो देश के भविष्य के बारे में सोचिए। क्षुद्र सपनों के लिए किसी तरह की हिंसा का समर्थन मत कीजिए।
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