बाबा विजयेन्द्र
वन-वन करती मोदी सरकार ‘नंबर वन’ होने जा रही है। ‘मोदी नंबर वन’ का नया रेकॉर्ड बजना देश में शुरू हो गया है। एक से बढ़कर एक फैसला ! वन नेशन वन इलेक्शन का फैसला यह एकाएक नहीं लिया गया है। अगर यह सदन से पारित हो गया कानून बन गया तो भारतीय राजनीति का चेहरा बदल जाएगा। यह सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। इस देश को चुनावी खर्च के अतिभार से मुक्त करना भी एक बड़ी जिम्मेदारी है।लेकिन केवल यही मामला नहीं है। क्षेत्रीय और क्षत्रप पॉलिटिक्स के लिए यह खतरा साबित होगा। इन्हें राष्ट्रीय दल होने और बने रहने में बड़ी दिक्कत आएगी। पारदर्शी और मितव्ययी चुनाव कराने की दिशा में उठा यह एक प्रभावी कदम है। इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्ष भर इस मुल्क में मतदाताओं को लुभाने का काम होता है। राष्ट्र के व्यापक हित में लिए जाने वाले फैसले भी चुनावी चश्मे से ही देखे जाते रहे हैं। स्वाभाविक है कि हर फैसले के केन्द्र में चुनाव जीतना ही लक्ष्य हो तो लोग इसे वैसे ही देखेंगे? राजनीतिक दल का काम केवल चुनाव लड़ना भर रह गया है। थोड़ा प्रयास टीएन शेषन ने किया था पर वह बहुत असर नहीं डाल पाया। हर साल चुनाव होने के कारण लोकतंत्र और राजनीति के प्रति उदासीनता बढ़ने लगी थी। एक साथ चुनाव कराने का फैसला बहुत सारे मानक को बदल देगा, ऐसी उम्मीद है।
हम उस देश के वासी हैं जहाँ केवल चुनाव होते रहते हैं। चुनाव विसंगति का पर्याय बन गया। चुनावी राजनीति की इन विसंगतियों से देश को दिशा कम मिली, दशा ज्यादा ख़राब हो गयी। ऐसा नहीं है कि दुनिया में कमजोर लोकतंत्र है हमारा, पर अगर यह वन नेशन और वन इलेक्शन की बात, बहुत पहले ही क़ानून बन जाती तो यह लोकतंत्र और भी मजबूत होता?
नयी पीढ़ी के सामने हम राजनीति का कोई आदर्श नहीं रख पाए। यह पीढ़ी केवल चुनावी राजनीति को ही जानती और पहचानती है। जबकि राजनीति उच्च मानदंड को स्थापित करने वाला जीवनादर्श है। यह राजनीति केवल चुनाव और प्रबंधन नहीं है,बल्कि एक मिशन है। और इस मिशन से वर्तमान पीढ़ी को जोड़ने की जरुरत थी जो नहीं हो पा रही थी। औसत दर्जे के हमारे चुनाव ने राजनीति को भी औसत दर्जे का बना दिया है। भारतीय संसदीय जनतंत्र के लिए यह एक बड़ी चुनौती रही है। चुनाव-सुधार की प्रक्रिया पहले भी हुई है। समय-समय पर चुनाव-प्रक्रिया में सुधार की कोशिश भी की जाती रही है। पर यह फैसला युगांतकारी साबित होगा ।
वन पीपुल,वन नेशन,वन कंस्टीटूशन और राष्ट्र-निर्माण का वन मिशन ही मोदीजी का विजन है। वैसे इस सुधार की बात अन्य राजनीतिक दल भी करते रहे हैं।लेकिन इस मामले में भाजपा ने प्रतिनिधि भूमिका निभाई है। बहाना बीजेपी ही सही,कुछ मीठा हो गया है। यह चुनावी-कड़वाहट को मिठास देगा। हम विविधता की जीते हुए एकरूपता की वकालत करते रहे हैं। कैबिनेट का यह फैसला भारतीय लोकतंत्र के लिए मील का पत्थर साबित होगा। पिछले साल के दो सितम्बर को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन हुआ था। इस भ्रम में न रहें कि यह केवल भाजपा का फैसला है बल्कि यह पूरे भारत का ही फैसला है कि लोकसभा और सभी विधानसभाओं का फैसला एक साथ कराया जाय । कोविंद के अलावे इस पैनल में शामिल अमित शाह,अधीर रंजन चौधरी,गुलाम नबी आजाद,एन.के.सिंह,सुभाष कश्यप और संजय कोठरी ने महती भूमिका निभाई। कम ही समय में यह रिपोर्ट तैयार होकर बीते मार्च में महामहिम राष्ट्रपति के सामने आ गया।
18626 पृष्ठ की इस रिपोर्ट में कई देशों की रिपोर्ट और उसका विश्लेषण शामिल है। स्वीडन, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया और फिलीपींस के मॉडल का भी विश्लेषण किया गया है। आने वाले शीतकालीन सत्र में इसे सदन के पटल पर रखा जाएगा। उम्मीद है कि यह बिल सर्वसम्मति से पास होगा। ख़ास बात यह है कि बिहार का आगामी विधान सभा मात्र साढ़े तीन साल का ही होगा। सभी विधान मंडलों की कालावधि में कटौती की गयी है ताकि इसे 29 के लोकसभा चुनाव के साथ सभी विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराये जा सकेंगें।