धर्म की यह वैष्णव परम्परा है या विश्नोई परम्परा?

आतिशबाजी का राम से क्या सम्बन्ध

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बाबा विजयेन्द्र

घर पुष्यमित्र आये थे या सम्राट अशोक अहिंसा के द्वार आये थे या फिर राम घर आये थे, दिवाली मनाने का इतिहास जो भी हो, अंधकार से प्रकाश की ओर जाना हमारे जीवन का अभिष्ट रहा है। तम से निरंतर जूझती इस तम-तमायी हुई दीवाली की आप सबको हार्दिक शुभकामनायें!
युद्धरत मनुष्यता कहीं बड़ा राकेट दाग रही है, तो कहीं छोटा राकेट दाग़ रही है। यह कुंठित कायनात आज बारूदी गंध से सराबोर है। इजराइल का रामल्ला हो या अयोध्या का रामलला, दुनिया की सियासतें अपनी अतिशी पारी खेलने में मस्त और व्यस्त है।
दिल्ली के आतिशी-आदेश की धज्जियाँ उड़ गयी हैं। दिल्ली की सड़कें विस्फोटों के अवशेष से पटी हुई हैं। यहां की सड़कें पर्यावरण का मूँह चिढ़ा रही हैं। पटाखे फोड़-फोड़ कर हमने देश और दिल्ली में हिंदुत्व को उनींद कर दिया है। हिंदुत्व अब अपनी कुम्भकरनी नींद से जाग उठा है। इस प्राणवंत हिंदुत्व से आप कितना प्रसन्न हो रहे होंगे, यह आप जानें? ज्यादा लिखूंगा तो आप एक बम मुझ पर भी फेंक सकते हैं। कुछ भी संभव है।
इस बार पटाखा उद्योग भारी मुनाफे में है। सारे प्रतिबन्ध हटा लिए गए। हर प्रकार के बम बने और बिके। वैसे हमारे पास तो बोफोर्स है। हमारे पास बागेश्वर है। आप जानते हैं कि बालाजी की कृपा से बागेश्वर उर्फ़ धीरेन्द्र शास्त्री बयानों का बम कैसे फोड़ते ही रहते हैं? ये रोज लंका लगाते रहते हैं। हनुमान की पूँछ और इनकी पर्ची दोनों बराबर है।
देश का हर कान बागेश्वर की आवाज से पाक हो चुका है। अब कुछ भी सुनने को शेष नहीं है। इस बार दिवाली को इन्होंने ख़ास बना दिया है। देश में अभी या तो बाबा हैं या फिर बागेश्वर। हे ईश्वर! थोड़ा इस बागेश्वर को समझाते कि पटाखे फोड़ने से धर्म की रक्षा नहीं होती?
बागेश्वर-बम की आवाज हर हिन्दू के कान तक पहुँच गयी है। इनके कारण खतरे में पड़ी दिवाली इस बार जानदार हो गयी है। बकरीद के बकरे भी इस दीवाली से खासे प्रसन्नता में हैं। अब अगर मुझे काटोगे तो मरोगे। इन तमाम बकरों की रहनुमाई में बागेश्वर बाबा आ खड़े हुए हैं। बकरे की मां अब खैर मना सकती है।
यह बाबा के पर्ची बम का कमाल है। यह वक्त इन बकरों का है। बेकारों की चिंता बाद में होगी। यह छोटा सत्य है। बड़ा सत्य अभी हिन्दुओं को बचाना है। बाबासाहेब और बापू के बीच के बड़ा सत्य और छोटा सत्य का संवाद अभी नये फॉर्मेट में हमारे सामने है। बात आज केवल बाबा की है, या बीजेपी की है।

बाबा, बीजेपी और भारत यह ‘थ्री बी’ काल है। पुराना ‘थ्री बी’ यानी भय,भूख और भ्रष्टाचार की बहस अब अतीत हो चुकी है। इन जुमलों के प्रति आपको जज्बाती होने की जरुरत नहीं है। इसे आप दिल पर भी न लें। धर्म की यह वैष्णव-परंपरा नहीं, बल्कि विश्नोई-परंपरा है। क्या सच और क्या झूठ, क्या रील और क्या रीयल, कुछ पता ही नहीं चल रहा है।

राम आये थे तो पटाखों के रूप में जन-विश्वास फूट रहा था। खुशियों की फुलप्रूफ फूलझड़ियां झड़ रही थी। आतिशबाजी का राम से क्या सम्बन्ध है? राम का सम्बन्ध तो दीप से है, दीपमाला से है। इस बार सरयू के तट पर रेकार्ड ब्रेक दीप जले हैं। हमारी रामभक्ति गिनीज बुक में दर्ज हो गयी है। हमारी भक्ति अब रेकार्ड के लिए ही है। नवधा से ज्यादा महत्व अब नोबेल का हो गया है। भक्ति में अब नोबेल प्राइज भी जरूरी है।

जो भी हो, राम इस बार जबरदस्त तरीके से अयोध्या आये हैं। सपाई रावण ने अयोध्या में गड़बड़ी अवश्य पैदा की थी पर अब ठीक है। अब यहां की रामसेना दुरुस्त है। तम्बू में राम का होना, यह सुनना ही ख़राब लगता था। व्यवस्था राम का वनवास ख़त्म ही नहीं होने दे रही थी? राम अब गुजरात के ठिकेदार के बनाये शानदार महल में हैं। दिवाली की खुशियां भी इस महल के अनुरूप ही मनाई जा रही है।
दिवाली गुजर जाएगी, पर सरयू के किनारे पड़े मलबे को कौन साफ करेगा? शायद कुछ मेहतर या सफाई कर्मचारी ही इसे साफ करते नजर आएंगे। बागेश्वर ने कहा की गंदगी फैलाओ पर साफ कौन करेगा? शायद बागेश्वर को साफ करने के लिए सड़क पर उतरना चाहिए। स्वर्ग बागेश्वर को और झाडू वंचित को?

खैर,सरयू के किनारे कुछ निर्धन बच्चे दिवाली के इस मलबे में कुछ खोज बीन रहे होंगे? अधजले दीपों से कुछ घी कुछ तेल अवश्य मिल जाएगा इन्हें, जिससे अपनी अधजली किस्मत की मालिश कर पाएंगे।

चलो अच्छा है। इस दिवाली में सबके हिस्से की खुशियां नसीब हो जाएगी। दीया तले अंधेरा! हमारी निगाह यहां भी हो। रौशनी में घर हो। इससे ज्यादा जरूरी है कि घर में रौशनी हो। मिठास डिब्बा से निकल कर दिल तक पहुंचे। प्रसन्नता बांटने से ही प्रसन्नता आएगी। आस्तीन में पटाखा मत रखिये। आस्तीन में साँप नहीं, अब सियासत ही है। मित्रो! सियासत कभी उत्सव पैदा नहीं कर सकती। यह आतंक ही पैदा करती है।

दीवाली को दिवाली रहने दें। वैचारिक दिवालियेपन की कोई जरुरत नहीं है। ख़ुश रहें और समाज को खुशियाँ दें। इस दौरे सियासत का अंधेरा हमें मिटाना चाहिए। एक हिम्मत का दीप जलाना जरूरी है। प्रकाश पर्व की शुभकामनायें!

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