शिक्षा के पुनर्गठन की साजिशों को समझना जरूरी है
शिक्षा के पुनर्गठन के बहाने वैज्ञानिक सोच की धार को कुंद करने की साजिश
ब्रह्मानंद ठाकुर
देश में आज कल शिक्षा के पुनर्गठन के बहाने वैज्ञानिक सोच की धार को कुंद करने की साजिश चल रही है। ऐसा कारपोरेट घरानों के इशारे पर किया जा रहा है। प्रसिद्ध रूसी साहित्यकार टाल्सटाय ने कहा था कि हुकूमत की ताकत जनता की अज्ञानता में निहित है। तात्पर्य यह कि आम जनता को अशिक्षित और वैज्ञानिक नजरिए से वंचित रख कर ही शासक पूंजीपति वर्ग द्वारा भाग्य और भगवान के नाम पर उसका भरपूर शोषण किया जा सकता है। इतिहास साक्षी है, जनता का शोषण तभी तक सम्भव हुआ है जबतक उसने अपने शासकों से सवाल न पूछे हैं, अपना हक न मांगा है, अपने वर्ग दुश्मन की पहचान न कर सकी है। इसके लिए जनता में तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का होना जरूरी है।
शासक वर्ग हमेशा से जनता में भाग्यवादी, आध्यात्मिक एवं कट्टरवादी सोच को बढ़ावा देने का काम करती है। आज दुनिया को वैज्ञानिक संसाधनों की तो जरूरत है लेकिन जनता में वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं चिंतन की जरूरत नहीं है। संकटग्रस्त पूंजीवाद आज आम जनता के जीवन से जुड़ी किसी भी समस्या का समाधान में पूरी तरह से अक्षम है। चाहे वह मंहगाई हो या बेरोजगारी, अशिक्षा हो या भ्रष्टाचार, किसी भी समस्या का समाधान कर पाना वर्तमान शासन व्यवस्था के बूते से बाहर की बात है। यही कारण है कि यह शोषणमूलक पूंजीवादी व्यवस्था इतिहास से सीख लेकर जनता के विक्षोभ की आशंका से हमेशा डरी रहती है। सही ज्ञान जनता को शोषण-उत्पीड़न से मुक्ति हेतु संगठित जन आंदोलन चलाने के लिए प्रेरित करता है। इस तथ्य की पुष्टि भी इतिहास से होती है। यही कारण है कि पूंजीवाद आज अपने गंभीर संकट के कारण वेज्ञानिक चिंतन का घोर विरोधी बन चुका है। वह आम जनता को सही ज्ञान और विवेक से दूर रखने के लिए हर सम्भव कोशिश कर रहा है। आज पाठ्यक्रमों को पुनर्गठित करने के बहाने अवैज्ञानिक और आध्यात्मिक चिंतन को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसा इसलिए कि जो थोड़े-बहुत छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, उनके अंदर तार्किक और वैज्ञानिक नजरिए का विकास न हो सके। कभी हमारे राष्ट्र नायकों ने आजादी के बाद देश में सही धर्मनिरपेक्ष, जनवादी, वैज्ञानिक और निशुल्क शिक्षा व्यवस्था लागू करने का सपना देखा था। आज शिक्षा का जो पुनर्गठन किया जा रहा है वह हमारे राष्ट्रनायकों के सपने के सर्वथा प्रतिकूल है। हमें शिक्षा के मूल उद्देश्यों से सीख लेंते हुए शिक्षा के पुनर्गठन की तमाम लुभावनी योजनाओं के पीछे छिपी सरकार की मंशा को समझने की जरूरत है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)