डॉ. योगेंद्र
सुबह सुबह मैंने अख़बार में एक खबर पढ़ी- यूपी के बहराइच में पाँच किलो गेहूँ की चोरी के संदेह में तीन दलित बच्चों को सिर मुंडवा कर और उसका काला चेहरा कर गाँव की गलियों में घुमाया गया। चोरी के प्रमाण नहीं हैं, संदेह है और तीन बच्चों को शारीरिक और मानसिक पीड़ा दी गई। गाँव के कुछ लोगों का आज भी कोर्ट चलता है। उनके पास कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तीनों है। रहे देश में लोकतंत्र! कहने को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र! लेकिन व्यवहार तो एकदम गया गुज़रा है। सुनते हैं कि एक कुँआरा संत मुख्यमंत्री हैं। उसके पास भी अलौकिक शक्ति है। बार-बार राम दरबार में आरती उतारता है। उसके पास भी सारी शक्तियाँ हैं। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सब ठेंगे पर है। लोकतंत्र की नयी रीत है। महाराज दिन में तो दिन में, रात में भी बुल्डोजर के साथ सोते हैं। जिस राम को धरती पर उतारने के लिए कितने क़वायद हुए। उनकी मूर्ति में जब प्राण फूंके गए, तो उम्मीद थी कि अब कम से कम यूपी के अच्छे दिन ज़रूर आयेंगे। शायद आये भी। कुँआरे संन्यासी के घर आये या जिन्होंने रामलला के आसपास ज़मीनें लूट कर होटल, मॉल, दूकानें आदि खोल लिये, उनके घर विराजमान हैं। इन दलित बच्चों के घर न पहले आये थे, न अब आये हैं। इनके भाग्य की रेखाएँ अजब ढंग से चलती हैं।
अख़बार में एक खबर और है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट है, जिसमें कहा गया है कि आने वाले दशक में 24 प्रमुख देशों में भारत की जीडीपी ग्रोथ सबसे तेज रहेगी। यह खबर पढ़ कर मैं तो आत्मविभोर हो गया। उस पर भी तड़का यह कि चीन की इकोनॉमी तमाम प्रोत्साहन के बाद भी सुस्त पड़ गयी है। चीन सुस्त हो गया है, तो मेरा भारतीय मन उछलने लगा। क्या ख़ूबसूरत नजारा है? देश का खिलौना, टॉफ़ी, झालर तक चीन से आ रहा है। भारतीय बाज़ार पर छाया हुआ है। देश क़र्ज़े में डूबता जा रहा है, तब भी इकोनॉमी ग्रोथ तेज है और उसमें भी जीडीपी। वह चीन से भी ज़्यादा ग्रोथ कर रहा है। सचमुच बाबा कबीर, इस देश में उलटबाँसी साबित हो रही है- बरसै कंबल, भीजै पानी। दलित बच्चा का पाँच किलो गेहूँ की चोरी के इलज़ाम में पिटाई हो रहा है। मुँह काला किया जा रहा है और देश का मुँह एक सफेद बुर्राक है। वाह भाई, वाह। इस लोकतंत्र की अद्भुत गाथा है। सचमुच करिश्माई देश है! घर में भूंजी भाँग नहीं, ड्योढ़ी पर नाच। नाचो भाई। सब मिल कर नाचो, नाचने का वक़्त है।
तब भी मन में बात औडती है कि क्या वर्ल्ड बैक झूठी रिपोर्ट कर रहा है? क्या जीडीपी ग्रोथ फ़र्ज़ी है? क्या वर्ल्ड बैंक भारत की प्रशंसा कर बेवक़ूफ़ बना रहा है? ग्लोबलाइज़ेशन या कहिए तथाकथित उदारीकरण के तीन एजेंट है – वर्ल्ड बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विदेशी कंपनियाँ। तीनों ने देश की बनी बनायी बाउंड्री को तोड़ दिया है। लोगों को जाने आने के लिए पासपोर्ट, वीज़ा चाहिए, इन दलाल एजेंसी को नहीं। तीनों महान ठग है। निर्धन देशों में घुसकर उसके संसाधन को लूट रहा है। पूरी दुनिया की इकनॉमी एक हो- इसका नारा है। लोगों में संपत्ति का बँटवारा नहीं हो, बल्कि उसका केंद्रीकरण हो। इसलिए देश के अंदर और बाहर अरबपति उग रहे हैं। चमकदार मॉल में चमकदार लोग। देश अब मॉल बन गया है, जिसको वही ख़रीदेगा, जो सिर्फ़ संपन्न नहीं, बल्कि जिसके पास सारी लोकतांत्रिक शक्तियाँ हैं। यूपी के बहराइच के दलित बच्चों के लिए अब बहुत जगह नहीं बची है, क्योंकि बची खुची जगह पर धन और धर्म पशुओं का क़ब्ज़ा हो गया है और हम मस्त हैं कि बस आउटर सिग्नल पर विकास खड़ा है और वह कभी भी स्टेशन पर दाखिल हो सकता है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए The Dialogue उत्तरदायी नहीं है।)