नर-नारी सम्बंधों के प्रति कुत्सित दृष्टिकोण बदलना होगा
वासनात्मक दृष्टिकोण में बदलाव लाने की जरुरत
ब्रह्मानंद ठाकुर
बांग्ला उपन्यासकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय का एक उपन्यास है —शेष प्रश्न। उपन्यास की नायिका का नाम है, किरणमयी। वह परित्यकता है। एक कमरे वाले किराए की कोठरी में रहती है। वह ज्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं है लेकिन नूतन मूल्यबोध और सांस्कृतिक चेतना से पूरी तरह लैस है। चीजों और घटनाओं को देखने-समझने की उसकी अपनी दृष्टि है। इसी नजरिए के कारण किरणमयी का व्यक्तित्व अन्य महिलाओं से पूरी तरह अलग है। उसी के पड़ोसी हैं, आशु बाबू। आशु बाबू खानदानी रईस हैं। एक जवान कुमारी बेटी के पिता भी हैं। उनके घर पर अक्सर बौद्धिक पुरुष-महिलाओं की गोष्ठियां आयोजित होती रहती है। गोष्ठी में सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर खूब बहसें होती है। कुछ ऐसी ही स्थिति में किरणमयी का भी आशु बाबू के घर आना-जाना शुरू होता है। गोष्ठियों में वह भी विभिन्न विषयों पर बड़ी बेबाकी से अपनी राय रखती है। आशु बाबू उसके विचारों से बड़ा प्रभावित होते हैं। एक दिन गोष्ठी देर रात तक चली।सबों का भोजन आशु बाबू के यहां ही हुआ। किरणमयी को अपने घर लौटना था सो आशु बाबू ने उस गोष्ठी में शामिल ब्रह्मचारियों का संगठन चलाने वाले एक युवक से किरणमयी को उसके घर पहुंचा देने को कहा। किरणमयी जब उस युवक के साथ घर पहुंची तो काफी जोरों की बारिश होने लगी थी। ऐसे में उस युवक का वापस लौटना मुश्किल था। किरणमयी उसे अपने कमरे में ले गई और घनघोर बारिश में उसे वहीं रुक जाने को कहा। कमरा एक ही था। युवक ने पूछा, अगर मैं रुक गया तो सोउंगा कहां? किरणमयी ने युवक से कहा, बस इसी कमरे में। तुम मेरे बिछावन पर सो जाना, मैं नीचे फर्श पर सो जाऊंगी। उसका यह प्रस्ताव ब्रह्मचारी संगठन के उस युवा को बड़ा ही अटपटा लगा। उसने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा, यहीं! इसी कमरे में! हम दोनों! किरणमयी उस युवक की शंका समझ गई। उसने तत्क्षण युवक से कहा, नहीं, अब तुम एक क्षण भी यहां नहीं रुक सकते। तुमने अबतक महिला और पुरुष के बीच सिर्फ एक ही सम्बंध को जाना है। तुम तुरंत यहां से चले जाओ और ऐसा कहते हुए किरणमयी ने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया। किरणमयी ने नारी-पुरुष सम्बंधों को लेकर बड़ी बात कह दी थी। अपने को ब्रह्मचारी कहने वाला युवक नर-नारी के प्रति स्वस्थ सम्बंधों से अनभिज्ञ था। आज भी हम कुछ ऐसी ही स्थितियों में जी रहे हैं। हमारा समाज न्याय-नीति, इंसानियत और मूल्यबोध से पूरी-तरह अलग-थलग हो गया है। हर मामले में हम अनैतिक जीवन जी रहे हैं। नर-नारी सम्बंधों के मामले में भी हम अनैतिक हो गये है। परिणाम सामने है। अबोध बच्चियों से लेकर 50-60 साल उम्र की महिलाएं बलात्कार की शिकार हो रही हैं। पूरे युवा समुदाय को यौनता का गुलाम बनाया जा रहा है। नर-नारी सम्बंधों के साथ इंसानियत भी मर रही है। यह मरनासन्न पूंजीवाद हमें कुरुचिपूर्ण चीजों की ओर ले जा रहा है। ऐसे में जरूरत है शेष प्रश्न की नायिका किरणमयी के उपरोक्त कथन को याद करते हुए नर-नारी के प्रति वासनात्मक दृष्टिकोण में बदलाव लाने की। ऐसा पूंजीवाद विरोधी समाजवादी क्रांति को सफल बना कर ही किया जा सकता है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)