डॉ योगेन्द्र
बीजेपी सरकार द्वारा वक्फ बिल पास करवा लिया गया और उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गाढ़े मित्र अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर टैरिफ लगाया जिससे देश पर 35 अरब का बोझ पड़ेगा। कौन सा कानून किसके लिए नफा नुकसान का होगा, यह तो भविष्य बताएगा। धार्मिक न्यासों पर ही शिकंजा कसने का अगर बीजेपी के पास सदाचारी मन होता तो सभी धर्मावलंबियों के लिए एक सा कानून बनाने की कोशिश होती। लेकिन चलिए, फिलहाल नाक-भौं सिकोड़ते या नफरतों से उत्पन्न खुशी में भींगते हुए स्वीकार कीजिए। यों बीजेपी का स्वभाव अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना का है, इसलिए अपनी पार्टी के दरवाजे उनके लिए बंद ही रखती है। दूसरे पगलाए अमेरिकी राष्ट्रपति ‘जैसे को तैसा’ स्टाइल में जो ट्रेड वार चला रखा है, उससे देश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन कैसे सामना करेंगे, यह कला कौशल तो वे जानें। वैसे इस खेल में वे बहुत कच्चे हैं। वे देश पर बोझ बढ़ाते ही जायेंगे।
जिन्ना और सावरकर का पाप देश के सिर पर नाच रहा है। जिन्ना को पाकिस्तान मिला। सावरकरपंथी को अभी तक इसका स्वाद नहीं मिला है। उन्हें पाकिस्तान टाइप का भारत चाहिए। वर्षों से वे लगे हुए हैं। इसके लिए वे बड़े-बड़े की क़ुर्बानी लेते रहे हैं। मेरे जैसे नाचीज भारतीयों के लिए देश में कितना स्पेस बचता है, यह तो भविष्य बताएगा। इतना भर लगता है कि आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से देश का भविष्य अच्छा नहीं है।
मेरे गाँव से एक- डेढ़ किलोमीटर दूरी पर दुर्गा स्थान है। बचपन में मैंने बतासे बेचे हैं। ज्यों-ज्यों बड़ा हुआ। मेले में रस आने लगा। एक तो सारे दोस्त मिलते। किसी दोस्त को बकरा बनाते और मिठाइयाँ खाते। खूब गप्पें मारते। बेवजह ठहाके लगाते। बड़े आनंददायक दिन थे। भागलपुर आ गए। नौकरी हुई। संतान आयी, तब भी दुर्गा पूजा अच्छी ही लगती। खासकर रावण दहन देखने के लिए पूरा परिवार लाजपत पार्क आते। कला केंद्र की छत से रावण को जलते हुए देखते। पिछले कुछ वर्षों से अनिच्छा सी हो गई है। पर्व अब डराने लगा है। समारोह की भव्यता बढ़ गई है। लेकिन भक्ति लुप्त होती जा रही है। वैसे ही मुहर्रम में। सड़कों पर जो प्रदर्शन होता है, वह कहीं से गम नहीं, डर पैदा करता है। भाले- गंडासे और नंगी तलवारें। दुर्गा और काली का भसान देखिए। सभी तरह के हथियार निकल आते हैं। लगता है कि हम मूर्ति को भसाने नहीं, युद्ध करने निकल पड़े हैं। कोई भी समूह अपने समूह को नहीं समझाता कि यह न पर्व मनाने का तरीका है, न धर्म की रक्षा का। पर्व में अखाड़े होते रहे हैं। मगर तब अखाड़ों के खेल में उत्साह और उमंग था। आज हमारे प्रदर्शन दूसरों को भयभीत करने के लिए होते हैं। घर में अशांति है और उधर वैश्विक स्तर पर खेल जारी है। डोनाल्ड ट्रंप दूसरे हिटलर की तरह हंटर लेकर खड़े हैं। जनता की भी बलिहारी है कि ऐसे ऐसे लोगों को बड़े-बड़े पदों पर चुन रही है। वैसे अमेरिका में एक नयी घटना घटी है। विस्कॉन्सिन सुप्रीम कोर्ट सीट से ट्रंप और मस्क के समर्थित उम्मीदवार हार गया, जबकि हर समर्थन करने वाले वोटर को एक सौ डालर और सेल्फी डालने पर पचास डालर दिया। चुनाव में उसने 225 करोड़ रुपए बाँटे। इतना करने के बाद भी डिमोक्रेट के उम्मीदवार क्रॉफर्ड जीत गया।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)