डॉ योगेन्द्र
यों आज भी सड़क पर धूल थी। लंबी- चौड़ी ट्रक, ऑटो और ई रिक्शे। मार्निंग वॉक के लिए तो उपयुक्त जगह नहीं है, लेकिन मेरी तो आदत है कि चाहे जो हो, एक घंटे तो टहलना ही है। चार- पाँच दिनों से हालत और खराब हो गई है। पहले सड़क की धूल फाँकते हुए हवाई अड्डे में प्रवेश कर जाता था, जहाँ चालीस मिनट तक चक्कर मार लेता था, लेकिन वहाँ पुलिस का पहरा लगा है। डीएम और एसपी दौड़ लगा रहे हैं। मैदान के बाहर में भी बैरिकेड लगाए जा रहे हैं। अंदर तो पक्षी भी पर नहीं मार सकता। आदमी की तो दूर की बात है। 24 जनवरी को पंडित प्रधानमंत्री भागलपुर आ रहे हैं। उनके लिए पूरा इंतजाम हो रहा है। मुझे नहीं लगता है कि किसी सम्राट का भी ऐसा स्वागत होता होगा। लोकतंत्र के भीतर हर कोटि के राजे उग आए हैं। मेरे जैसे अनेक लोग सड़क पर ही टहल लेते हैं। ज्यों-ज्यों दिन नजदीक आ रहा है, लगता है सड़क भी बंद कर दी जाएगी। काश, यही प्रशासन जनता के मामले में अपनी तत्परता दिखाता। जनता जो जनतंत्र का मालिक है, वह सेवक नहीं चुनता, शासक चुनता है। कांग्रेसी राज के प्रधानमंत्री की भी तड़क भड़क होती थी। वह भी आँखों को खटकती थी, लेकिन यह तो तड़क भड़क का चरमोत्कर्ष है। मेयर और पार्षद छटपटाये हुए हैं कि उनके लिए पीएम सभा में बैठने के लिए अलग इंतजाम हो। उनके लिए वीआईपी पास जारी हो। उन्होंने यह भी चिह्नित किया है कि सीएम की सभा में उनके लिए कोई जगह निर्धारित नहीं थी। मेरा भी प्रशासन से आग्रह है कि कुंभ स्नान के बाद भाषण स्नान हेतु इनके लिए जरूर इंतजाम हो। आख़िर उन्होंने कई दिनों से अपने कर्मचारियों को प्रधानमंत्री की सेवा में ही लगा दिया है। धरना चौबे अपने सुपुत्र के साथ प्रधानमंत्री की सभा में आने के लिए घर घर आमंत्रण पत्र बाँट रहे हैं। भागलपुर लहालोट है। आख़िर उनके सभी दुखों से मुक्ति के लिए प्रधानमंत्री पधार रहे हैं।
कुंभ ने जब महाकुंभ का स्वरूप ग्रहण किया तो सनातनी लोग भागे भागे प्रयाग पहुँचे। सुनते हैं कि 53 करोड़ लोग कुंभ स्नान कर पाप कटा चुके हैं। जिन्हें बाद में पता चला वे भी अपना कारोबार छोड़ कर ट्रेन से प्रस्थान कर चुके हैं। ट्रेनें हाँफ रही हैं। मुझे गोनू झा की एक कहानी याद आ रही है। एक दिन एक आदमी गोनू झा से टक्कर लेने उनकी बस्ती में पहुँचा। आदमी बहुत तेज तर्रार था। गोनू झा उसकी भाव- भंगिमा से समझ गया कि वह इससे जीत नहीं पायेगा। और फिर वह हारना भी नहीं जानता था। इसलिए उसने एक तरकीब लगाई। उसने पास बैठे आदमी के कान में फुसफुसाया- जानते हो। यह आदमी बहुत प्रतापी है। अगर इसकी मूँछ का एक बाल उखाड़कर अपनी कोठी में रख दो तो अन्न कभी नहीं घटेगा। वह आदमी उठा और जाकर उस आदमी की मूँछ का एक बाल उखाड़ लिया। बाल उखाड़ने वाले से लोगों ने जाना कि बाल उखाड़ने का यह महातम है। सो बारी-बारी से आदमी उठा और उसके बाल उखाड़ने लगा। मूँछ- लूट से वह आदमी बहुत परेशान हुआ और वहाँ से निकल कर भागने लगा। तभी एक महिला ने खेत में काम कर रहे मर्द से कहा कि ज़िंदगी भर खेत में पसीना बहाते रहिएगा? गाँव में मूँछ की लूट हो रही है और मूँछ का करिश्मा यह है कि जो एक बाल उखाड़ कर अपनी कोठी में रखेगा, उसका अन्न कभी नहीं घटेगा। आप जीवन भर भोंदू के भोंदू ही रह गये। मर्द ने पूछा कि कहाँ है वह इकबाली आदमी? औरत ने भागते हुए आदमी की ओर इशारा किया। मर्द ने हल की फाल निकाली और कहा- लोगों ने तो मूँछ लूटी है, मैं मूँछ वाली पूरी जगह ही काट कर ले आता हूँ। यह कह कर वह आदमी की ओर दौड़ पड़ा। एक झूठी अफवाह ने भारत को तंग और तबाह कर दिया है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए Swaraj Khabar उत्तरदायी नहीं है।)